अटल बिहारी वाजपेयी का राष्ट्रपति बनने से इनकार: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण
अटल बिहारी वाजपेयी का राष्ट्रपति पद से इनकार
क्या आप जानते हैं कि भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया? यदि वे चाहते, तो आसानी से इस पद को ग्रहण कर सकते थे। जानकारी के अनुसार, जब डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर विचार किया जा रहा था, तब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर से यह सुझाव आया कि वाजपेयी राष्ट्रपति बनें और प्रधानमंत्री पद लालकृष्ण आडवाणी को सौंप दें। हालांकि, वाजपेयी ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कहा कि ऐसा करना एक गलत परंपरा की शुरुआत करेगा।
अशोक टंडन, जो वाजपेयी के मीडिया सलाहकार रहे हैं, ने अपनी पुस्तक 'अटल संस्मरण' में इस घटना का उल्लेख किया है। उन्होंने बताया कि डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम 2002 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और विपक्ष के समर्थन से 11वें राष्ट्रपति बने।
टंडन ने खुलासा किया कि भाजपा के भीतर से यह सुझाव आया कि वाजपेयी को राष्ट्रपति भवन भेजा जाए। उन्होंने लिखा, 'डॉ. पी.सी. अलेक्जेंडर, जो महाराष्ट्र के राज्यपाल थे, को इस संबंध में संकेत दिए जा रहे थे।' यह सुझाव दिया गया कि इससे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी असहज होंगी।
इस बीच, भाजपा के भीतर से आवाज उठने लगी कि क्यों न किसी वरिष्ठ नेता को राष्ट्रपति पद के लिए चुना जाए। टंडन के अनुसार, विपक्ष ने राष्ट्रपति के.आर. नारायणन को राजग के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की, लेकिन नारायणन ने यह शर्त रखी कि वे तभी चुनाव लड़ेंगे जब निर्विरोध चुने जा सकें।
वाजपेयी ने अपने दल के भीतर से आ रहे सुझावों को ठुकरा दिया कि वे राष्ट्रपति भवन जाएं। टंडन के अनुसार, वाजपेयी का मानना था कि किसी लोकप्रिय प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति बनना भारतीय लोकतंत्र के लिए सही नहीं होगा। उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को आमंत्रित किया ताकि राष्ट्रपति पद के लिए आम सहमति बनाई जा सके।
वाजपेयी ने सोनिया गांधी, प्रणब मुखर्जी और डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात की और बताया कि राजग ने डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का निर्णय लिया है। इस पर सोनिया गांधी ने कहा कि उनके चयन से वे स्तब्ध हैं, लेकिन समर्थन देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
अशोक टंडन ने अपनी पुस्तक में वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए अन्य घटनाओं का भी उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि वाजपेयी और आडवाणी के बीच संबंधों में सार्वजनिक कटुता नहीं आई। टंडन के अनुसार, दोनों नेताओं की मित्रता और साझेदारी ने भाजपा को नई दिशा दी।
उन्होंने 2001 में संसद हमले के समय वाजपेयी और सोनिया गांधी के बीच फोन पर हुई बातचीत का भी जिक्र किया। जब वाजपेयी ने कहा कि उन्हें सोनिया की चिंता है, तो यह दर्शाता है कि वे एक संवेदनशील नेता थे।
अटल संस्मरण एक राजनीतिक संस्मरण है, जो वाजपेयी के व्यक्तित्व और नेतृत्व शैली को उजागर करता है। इसमें कई महत्वपूर्ण घटनाओं का विवरण है, जैसे पोखरण परमाणु परीक्षण और कारगिल युद्ध। टंडन ने बताया कि वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने इन परीक्षणों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
यह पुस्तक युवा पाठकों को वाजपेयी के नेतृत्व का अनुभव कराती है, जिसमें कठोरता और संयम का संतुलन है। वाजपेयी का यह दृष्टिकोण शांति और सहयोग पर जोर देता है।
