एक जमींदार की कहानी: दया और माफी का महत्व
जमींदार की बीमारी और संत का आगमन
एक गाँव में एक जमींदार लंबे समय से बीमार था। उसने अपने इलाज के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन उसे कोई राहत नहीं मिली।
एक दिन, गाँव में एक संत आए। जमींदार ने उनके दर्शन किए और दुखी मन से अपनी बीमारी के बारे में बताया।
उसने कहा, 'महात्मा जी, मेरे पास बहुत सी ज़मीन है, लेकिन मैं एक गंभीर बीमारी से ग्रस्त हूँ जो ठीक नहीं हो रही।'
महात्मा जी ने उससे पूछा कि उसे क्या समस्या है। जमींदार ने बताया कि उसे मल त्याग करते समय अत्यधिक खून आता है और जलन होती है।
संत की सलाह
महात्मा जी ने ध्यान लगाकर कहा, 'क्या तुमने कभी किसी का दिल दुखाया है, जिसके कारण तुम यह पीड़ा झेल रहे हो?'
जमींदार ने कहा, 'नहीं, मैंने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया।'
महात्मा जी ने उसे याद दिलाया कि क्या उसने कभी किसी का हक छीना है या किसी को नुकसान पहुँचाया है।
जमींदार ने स्वीकार किया कि उसकी एक विधवा भाभी है, जो अपने हिस्से की ज़मीन मांग रही थी, लेकिन उसने उसे कुछ नहीं दिया।
परिवर्तन की शुरुआत
महात्मा जी ने उसे सलाह दी कि वह अपनी भाभी को हर महीने सौ रुपये भेजना शुरू करे।
जमींदार ने ऐसा करना शुरू किया, लेकिन कुछ समय बाद उसने संत से कहा कि वह केवल पचहत्तर रुपये भेजता है।
महात्मा जी ने उसे बताया कि यही कारण है कि उसकी बीमारी पूरी तरह ठीक नहीं हुई।
उन्होंने कहा कि उसे अपनी भाभी को पूरा हक देना चाहिए और उसे सम्मान के साथ बुलाना चाहिए।
जमींदार का पछतावा
जमींदार को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने तुरंत अपनी भाभी और उसके भाईयों को बुलाया और गाँव के सामने अपनी ज़मीन और पैसे उन्हें सौंप दिए।
उसने हाथ जोड़कर अपने किए गए जुल्मों की माफी मांगी।
भाभी ने उसे माफ कर दिया और उसे आशीर्वाद दिया।
जमींदार की बीमारी जल्द ही ठीक हो गई।
सीख
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए।
अगर आप भी किसी बीमारी से ग्रस्त हैं, तो सोचें कि कहीं आपने किसी का दिल तो नहीं दुखाया है।
याद रखें, भगवान की लाठी बिना आवाज़ के होती है।
