RSS की 100 साल की यात्रा: आरोपों का सामना और राजनीतिक प्रभाव

RSS का ऐतिहासिक सफर

संघ के 100 साल पूरे
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एक ऐसा संगठन है जिसे अपने अस्तित्व के आरंभ से ही विभिन्न आरोपों का सामना करना पड़ा है। इसके खिलाफ हर दिन नए आरोप लगाए जाते हैं, लेकिन आज तक कोई भी विरोधी इसे कमजोर नहीं कर सका है। इसका मुख्य कारण यह है कि संघ की जड़ें समाज में गहरी हैं। यह संगठन अपने उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से रखता है, जिसमें देश की अखंडता और हिंदुओं की एकता शामिल है। यह न तो एक धार्मिक संगठन है और न ही धार्मिक गतिविधियों में संलग्न होता है। यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है, जिसके कारण राजनीति में इसकी भूमिका अनिवार्य रूप से बढ़ जाती है।
विरोधियों की असफलता
आरोप लगाने वाले ही लड़खड़ा जाते रहे
RSS अपने एजेंडे पर अडिग रहता है, चाहे सत्ता में कौन हो। यह संगठन किसी भी गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल नहीं होता, जिससे पिछले 100 वर्षों से इसकी यात्रा निरंतर जारी है। इसने विभिन्न सरकारों के शासनकाल को देखा है, लेकिन कभी भी इसकी गतिविधियों पर स्थायी रोक नहीं लगाई जा सकी। चाहे सत्ता में अनुकूल विचारधारा हो या प्रतिकूल, RSS ने हमेशा अपने विरोधियों को मुंह की खानी पड़ी है।
RSS का मुस्लिम फ्रंट
RSS के पास अपना मुस्लिम फ्रंट भी
RSS पर यह आरोप लगाया गया है कि यह सांप्रदायिकता को बढ़ावा देती है, लेकिन दंगा पीड़ितों ने इसका खंडन किया है। इसके राजनीतिक विरोधियों को बार-बार शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है। कुछ बुद्धिजीवी इसे इस्लाम का विरोधी मानते हैं, जबकि RSS के सिद्धांतों में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है। इसके मुस्लिम फ्रंट में भी मुसलमानों की संख्या महत्वपूर्ण है।
ब्राह्मणवादी संगठन नहीं
ब्राह्मणवादी संगठन नहीं है RSS
कुछ लोग RSS को ब्राह्मणवादी संगठन मानते हैं, लेकिन यह आरोप भी गलत साबित होता है। RSS के प्रचारकों में गैर-ब्राह्मणों की संख्या भी काफी है। 1994 में एक गैर-ब्राह्मण को सर संघ चालक बनाया गया था। RSS के संविधान में ब्राह्मण होने को किसी प्रकार की श्रेष्ठता नहीं माना गया है।
हर सरकार में RSS के समर्थक
हर सरकार में RSS के समर्थक
RSS हर सत्ता में ऐसे व्यक्तियों की तलाश करता है जो भारत की एकता और अखंडता के प्रति प्रतिबद्ध हों। यह संगठन किसी भी राजनीतिक दल से प्रभावित नहीं होता। यह नेहरू, पटेल, इंदिरा गांधी, और मनमोहन सिंह जैसे नेताओं में भी अपनी पहचान बनाता है।
भारतीयता के प्रति कट्टरता
भारतीयता के प्रति कट्टर रहता है संघ
हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में कभी-कभी RSS और मोदी के बीच मतभेद दिखाई देते हैं, लेकिन दोनों का लक्ष्य समान है। RSS भारतीयता को लेकर कट्टर है और इसे धुर दक्षिणपंथी कहा जाता है। यह संगठन सभी भारतीयों को एक समान मानता है, बशर्ते वे देश प्रेमी हों।
RSS की चुनौतियाँ
RSS ने हिरावल दस्ता नहीं तैयार किया
RSS की यह दृढ़ता उसे आरोपों से बचाती है, लेकिन यह संगठन अपने 100 वर्षों के सफर में ऐसे विचारशील व्यक्तियों को तैयार नहीं कर सका जो विरोधियों का सामना कर सकें। इसे अपने थिंक टैंक पर ध्यान देने की आवश्यकता है।