RSS का शताब्दी समारोह: कूटनीतिक संकेत और संवाद का मंच

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपने शताब्दी वर्ष में एक भव्य समारोह का आयोजन कर रहा है, जो 26 से 28 अगस्त तक दिल्ली में होगा। इस कार्यक्रम में पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की को निमंत्रण न भेजने के पीछे की कूटनीतिक सोच और संघ की बदलती रणनीति पर चर्चा की जाएगी। संघ प्रमुख मोहन भागवत के सवालों के जवाब देने के साथ, यह आयोजन समाज के विभिन्न वर्गों के साथ संवाद का एक महत्वपूर्ण मंच बनेगा। जानें इस समारोह के पीछे की गहरी सोच और भविष्य की दिशा के बारे में।
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RSS का शताब्दी समारोह: कूटनीतिक संकेत और संवाद का मंच

RSS का शताब्दी वर्ष समारोह

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है, और इस अवसर पर 26 से 28 अगस्त तक दिल्ली के विज्ञान भवन में एक भव्य समारोह का आयोजन किया जाएगा। यह कार्यक्रम संघ की विचारधारा और यात्रा पर विचार करने का एक मंच होगा, साथ ही इसकी वर्तमान रणनीति और भविष्य की दिशा को भी उजागर करेगा। हालांकि, इस आयोजन के कूटनीतिक पहलुओं और कुछ देशों की अनुपस्थिति ने नई चर्चाओं को जन्म दिया है।


कूटनीतिक दृष्टिकोण

RSS द्वारा पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की को निमंत्रण न भेजना केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी कूटनीतिक और वैचारिक सोच है। पाकिस्तान को निमंत्रण न देने का कारण ‘वातावरण अनुकूल नहीं है’ बताया गया है। भारत-पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चल रही शत्रुता और सीमावर्ती तनाव इस निर्णय का आधार हो सकते हैं। वहीं, बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों की खबरें चिंता का विषय बनी हुई हैं। विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने इस मुद्दे को बार-बार उठाया है। तुर्की का बहिष्कार भी एक रणनीतिक संकेत है, क्योंकि पाकिस्तान के साथ उसके बढ़ते रक्षा संबंध और भारत विरोधी भूमिका ने उसे संघ के नजरिए में ‘संदेहास्पद’ बना दिया है। स्वदेशी जागरण मंच ने तुर्की पर आर्थिक प्रतिबंधों की मांग की है, जो इसी प्रवृत्ति का हिस्सा है। यह निर्णय दर्शाता है कि RSS अब केवल एक सांस्कृतिक संगठन नहीं रह गया है; वह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है।


संवाद और आत्ममंथन का अवसर

इस बार का आयोजन केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्ममंथन और संवाद का मंच बनने जा रहा है। अंतिम दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत श्रोताओं के सवालों का उत्तर देंगे, जो एक खुलापन दर्शाता है। संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर के अनुसार, यह आयोजन संघ की विचारधारा को स्पष्ट करने, आलोचनाओं का उत्तर देने और भविष्य की दिशा तय करने का एक अवसर है। उनका कहना है कि अब समय है कि भारत “औपनिवेशिक संरचनाओं” पर प्रश्नचिन्ह लगाए और चिकित्सा, अर्थशास्त्र जैसे क्षेत्रों में भारतीय दृष्टिकोण को विकसित करे। यह सोच, संघ की वर्षों से चली आ रही स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को नया आयाम देती है।


विपक्ष और अल्पसंख्यकों का समावेश

हालांकि पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की को दूर रखा गया है, फिर भी इस आयोजन की एक विशेषता यह है कि विपक्षी दलों, मुस्लिम और ईसाई समुदायों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जा रहा है। यह आलोचकों को उत्तर देने का प्रयास भी है, जो अक्सर संघ को ‘एकधर्मी’ या ‘विभाजक’ संगठन कहकर संबोधित करते हैं। व्यापक आमंत्रण सूची यह संकेत देती है कि संघ अपने शताब्दी वर्ष को समाज के हर वर्ग से संवाद के अवसर के रूप में देखना चाहता है। दिल्ली में उद्घाटन के बाद, यह आयोजन बेंगलुरु, कोलकाता और मुंबई तक फैलेगा। इसका उद्देश्य केवल संघ की विचारधारा का प्रचार नहीं, बल्कि स्थानीय संदर्भों में संवाद और सहभागिता को भी बढ़ावा देना है।


RSS का भविष्य की ओर दृष्टिकोण

RSS का यह आयोजन केवल एक संगठन का उत्सव नहीं है, बल्कि भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और वैचारिक धारा में RSS की भूमिका पर राष्ट्रीय विमर्श का मंच भी है। निमंत्रण न भेजना कूटनीतिक रुख को रेखांकित करता है, वहीं विपक्ष और अल्पसंख्यकों को शामिल करना संघ की बदलती रणनीति और सामाजिक संवाद की इच्छा को दर्शाता है। RSS अब केवल अतीत पर गर्व करने वाला संगठन नहीं रह गया है, बल्कि वह भविष्य की परिकल्पना भी कर रहा है— एक ऐसा भविष्य जो भारतीय सोच, आत्मनिर्भरता और संवाद पर आधारित हो।