राहुल गांधी की राजनीतिक चूक: छठ पूजा पर विवादित टिप्पणी
राहुल गांधी ने छठ पूजा को लेकर की गई विवादास्पद टिप्पणी से बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। उनकी इस टिप्पणी ने भाजपा को एक मजबूत राजनीतिक अवसर प्रदान किया है। प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने इस मुद्दे का लाभ उठाते हुए कांग्रेस पर जोरदार हमले किए हैं। इस लेख में जानें कि कैसे यह विवाद बिहार की सांस्कृतिक आस्था को प्रभावित कर सकता है और राहुल गांधी की राजनीतिक रणनीति पर इसका क्या असर पड़ेगा।
| Oct 30, 2025, 15:23 IST
राहुल गांधी की विवादास्पद टिप्पणी
बिहार की राजनीतिक परिदृश्य में राहुल गांधी ने एक बार फिर वही गलती की है, जो वह पहले भी कर चुके हैं। यह गलती जनता की आस्था को 'ड्रामा' बताने की है। आश्चर्य की बात यह है कि राहुल की इस तरह की हर गलती का भारी खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ता है, फिर भी वह सबक नहीं लेते। छठ पूजा पर राहुल का यह तंज न केवल राजनीतिक भूल थी, बल्कि चुनावी दृष्टि से आत्मघाती भी साबित हुई। जब उन्होंने दिल्ली के यमुना तट पर छठ आयोजन का जिक्र करते हुए कहा कि “प्रधानमंत्री छठ पूजा के बहाने ड्रामा करते हैं,” तो यह तीर सीधे प्रधानमंत्री मोदी पर नहीं, बल्कि उन करोड़ों माताओं और बहनों के दिल पर लगा, जो हर साल निर्जला व्रत रखकर सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा करती हैं।
भाजपा का राजनीतिक लाभ
राहुल गांधी का यह बयान भाजपा के लिए एक राजनीतिक वरदान बन गया। मुजफ्फरपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी मुद्दे को उठाते हुए महागठबंधन पर जोरदार हमला किया। मोदी ने कहा, “जब आपका बेटा छठी मैया की जय-जयकार कर रहा है, तब ये कांग्रेस और आरजेडी वाले उसी छठी मैया का अपमान कर रहे हैं। क्या बिहार की माताएं-बहनें इसे सहन करेंगी?”
मोदी का सांस्कृतिक जुड़ाव
प्रधानमंत्री का यह भाषण केवल राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं था, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक चेतना से जुड़ी भावनाओं को छूने वाला था। वहीं, राहुल गांधी ने मोदी की छवि पर चोट करने के प्रयास में बिहार की आस्था को निशाना बना दिया। यह वही गलती है, जो बिहार की राजनीति में घातक साबित होती है— क्योंकि यहाँ छठ केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आस्था का उत्सव है।
अमित शाह की चेतावनी
इस मुद्दे को और सियासी धार देते हुए लखीसराय की रैली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “राहुल बाबा प्रधानमंत्री का अपमान करते-करते छठी मैया का भी अपमान कर बैठे। इतिहास गवाह है— जब-जब कांग्रेस ने मोदी के लिए अपशब्द बोले, तब-तब उसका सूपड़ा साफ हुआ।” अमित शाह का यह बयान न केवल चेतावनी थी, बल्कि बीजेपी की चुनावी रणनीति का स्पष्ट संकेत था कि “आस्था के खिलाफ कोई नहीं टिकेगा।”
बिहार की सियासत में नया मोड़
बिहार की सियासत में यह नया मोड़ भाजपा को वह नैरेटिव दे रहा है जिसकी उसे तलाश थी— ‘आस्था बनाम अहंकार’। एक तरफ मोदी छठ को “जनश्रद्धा का गौरव” बताकर खुद को बिहार की संस्कृति से जोड़ रहे हैं, वहीं राहुल गांधी का बयान उन्हें “आस्था विरोधी” खेमे में खड़ा कर रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि राजनीति में शब्द तीर बनते हैं और राहुल गांधी का यह तीर इस बार अपने ही पाले में गिर गया है। बिहार के जनमानस में छठ पूजा धर्म से अधिक भावनात्मक पहचान है— इसे अपमानित करना केवल राजनीतिक गलती नहीं, बल्कि सांस्कृतिक असंवेदनशीलता है।
भविष्य की अनिश्चितता
अब सवाल यह नहीं है कि किसने क्या कहा, बल्कि यह है कि क्या राहुल गांधी ने अपनी राजनीति के अहंकार में बिहार की आस्था की रेखा पार कर दी है? और यदि ऐसा है, तो आने वाले दिनों में छठी मैया की कृपा किस पर बरसेगी— यह तय करने की ताकत अब बिहार के जन-मन के हाथों में है।
