नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा: पलटने की कला और वर्तमान स्थिति

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। उनकी छवि एक ऐसे नेता की बन गई है, जो पाला बदलने में माहिर हैं। इस लेख में हम उनकी राजनीतिक रणनीतियों, ताकत और कमजोरियों पर चर्चा करेंगे। जानें कैसे उन्होंने महागठबंधन और एनडीए के साथ अपने संबंधों को संभाला और क्या है उनकी वर्तमान स्थिति।
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नीतीश कुमार की छवि और राजनीतिक रणनीति

बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की छवि एक ऐसे नेता की बन गई है, जो राजनीतिक ध्रुवीकरण में माहिर हैं। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी तेजस्वी यादव को दो बार उपमुख्यमंत्री बनाया है और उन्हें 'पलटू चाचा' और 'पलटू राम' जैसे नामों से भी संबोधित किया है। यह आरोप उनके खिलाफ बेबुनियाद नहीं हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले, जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किया, तब नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन का हाथ थाम लिया। उन्होंने यह कहते हुए दूरी बनाई कि मोदी की राजनीति ध्रुवीकरण पर आधारित है।


नीतीश कुमार की राजनीतिक चालें

नीतीश कुमार की छवि को नुकसान उठाना पड़ा है, जिसके चलते उन्हें बार-बार यह स्पष्ट करना पड़ा कि जेडीयू और एनडीए का गठबंधन स्वाभाविक है। उन्होंने वक्फ अधिनियम पर बीजेपी का समर्थन किया, जबकि उनकी छवि मुस्लिम समुदाय में भी सकारात्मक रही है। उन्हें यह पता था कि इस कदम से मुस्लिम मतदाता नाराज होंगे, फिर भी उन्होंने बीजेपी का साथ दिया।


नीतीश कुमार का बयान

19 अक्तूबर 2024 में नीतीश कुमार का बयान:-
दो बार गलती हो गई है। अब इधर-उधर नहीं जाएंगे। शुरू से हम लोग साथ थे। जब पार्टी बनाए थे तो साथ थे। हम लोग गड़बड़ कर दिए। इधर-उधर चले गए। बीजेपी से दो बार अलग हो गए, लेकिन अब हम कहीं नहीं जाएंगे। वे लोग जरा सा गड़बड़ नहीं करता है। बहुत गड़बड़ करता है। अब आ गए हैं, तो कहीं नहीं जाएंगे।


नीतीश कुमार की राजनीतिक पाले बदलने की घटनाएं

जून 2013 वह आखिरी समय नहीं था जब नीतीश कुमार ने अपना पाला बदला। 2015 में महागठबंधन के साथ सरकार बनाने के बाद, 2017 में उन्होंने अचानक एनडीए का हाथ थाम लिया, यह कहते हुए कि वह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर महागठबंधन से अलग हो रहे हैं। कुछ घंटों बाद, 26 जुलाई 2017 को वह एनडीए में शामिल हो गए।


नीतीश कुमार की राजनीतिक ताकत और कमजोरियां

  • लोकसभा: 12 सांसद
  • विधानसभा: 85 विधायक


बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार ने 2020 की तुलना में 43 सीटें बढ़ाकर 85 तक पहुंच गए हैं, लेकिन महागठबंधन के पास इतनी कम सीटें हैं कि वह सरकार नहीं बना सकते।


इस बार नीतीश कुमार पलटी नहीं मार सकते हैं, क्योंकि विपक्ष केवल 35 सीटों पर सिमट गया है। बीजेपी के पास 89 सीटें हैं, जिससे वह बिना नीतीश कुमार के भी सरकार बना सकती है।


जेडीयू के विधायकों की स्थिति

अगर नीतीश कुमार अपने विधायकों को संभालने में सफल होते हैं, तो बिहार में राजनीतिक खेल बदल सकता है। महागठबंधन में शामिल होने पर उनके विधायकों की संख्या 120 हो जाएगी। असदुद्दीन ओवैसी पहले ही महागठबंधन से 6 सीटें मांग चुके हैं।