अखिलेश यादव ने बिहार चुनाव में भाजपा पर साधा निशाना

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने बिहार चुनाव में भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए हैं, विशेष गहन समीक्षा (SIR) को चुनावी साज़िश करार दिया। उन्होंने कहा कि बिहार के बाद अन्य राज्यों में ऐसा नहीं होने देंगे। चुनाव के रुझान एनडीए की मजबूत बढ़त को दर्शाते हैं, जो नीतीश कुमार की निर्णायक जीत की ओर इशारा कर रहे हैं। जानें इस चुनाव के परिणाम और यादव के बयान के पीछे की राजनीति।
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अखिलेश यादव ने बिहार चुनाव में भाजपा पर साधा निशाना

अखिलेश यादव का भाजपा पर हमला

समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी पर तीखा आरोप लगाया। उन्होंने बिहार चुनाव में महागठबंधन की हार के लिए विशेष गहन समीक्षा (SIR) को जिम्मेदार ठहराया। यादव ने इसे एक "चुनावी साज़िश" बताया और कहा कि बिहार के बाद पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश या अन्य राज्यों में ऐसा नहीं होने देगा। उन्होंने 'X' पर लिखा कि बिहार में SIR द्वारा जो खेल खेला गया है, वह अब प. बंगाल, तमिलनाडु, यूपी और अन्य जगहों पर नहीं होगा, क्योंकि इस साज़िश का भंडाफोड़ हो चुका है। अब हम इनको यह खेल नहीं खेलने देंगे। CCTV की तरह हमारा ‘PPTV’ यानी ‘पीडीए प्रहरी’ भाजपा के मंसूबों को विफल करेगा। भाजपा एक छल है, दल नहीं।


बिहार चुनाव के रुझान

जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनावों की मतगणना आगे बढ़ रही है, प्रारंभिक रुझान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की मजबूत बढ़त को दर्शा रहे हैं। यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की एक निर्णायक चुनावी जीत हो सकती है। रुझान यह संकेत देते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के चलते, जेडी(यू)-बीजेपी की नई साझेदारी एनडीए को 243 सीटों वाली विधानसभा में व्यापक जनादेश की ओर ले जा रही है।


चुनाव आयोग के आंकड़े

चुनाव आयोग द्वारा दोपहर 1:18 बजे जारी आंकड़ों के अनुसार, नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए ने कुल 198 सीटें हासिल की हैं, जिसमें बीजेपी 90, जेडीयू 80, एलजेपी 21, हम 4 और आरएलएम 4 सीटों पर आगे हैं। नीतीश कुमार के लिए, जो लगभग दो दशकों से राज्य पर शासन कर रहे हैं, यह चुनाव राजनीतिक सहनशक्ति और जनता के विश्वास की परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है। बिहार को "जंगल राज" से बाहर निकालने के लिए कभी "सुशासन बाबू" कहे जाने वाले मुख्यमंत्री को हाल के वर्षों में मतदाताओं की थकान और अपने बदलते राजनीतिक रुख पर सवालों का सामना करना पड़ा है। फिर भी, मौजूदा रुझान एक उल्लेखनीय बदलाव को दर्शाते हैं, जो यह दिखाता है कि मतदाता एक बार फिर उनके शासन मॉडल में विश्वास जता रहे हैं।