Ethanol: भारत में ग्रीन फ्यूल या यूरोप में खतरा?
Ethanol का संकट: क्या यह अब खतरा बन गया है?
सांकेतिक तस्वीर.
जिस Ethanol ने लाखों लोगों की जान बचाई, अब वह खुद सवालों के घेरे में है। कोरोना के दौरान हर हाथ में मौजूद, अब यूरोप इसे ज़हर मान रहा है। हैंड सैनिटाइज़र से लेकर पेट्रोल तक, Ethanol हर जगह है, लेकिन क्या यह अब एक साइलेंट किलर बन चुका है?
आइए जानते हैं, इथेनॉल के इस वैश्विक रासायनिक संकट की सच्चाई – जहां विज्ञान, राजनीति और ऊर्जा तीनों का टकराव हो रहा है। यूरोप में इसे खतरे का रसायन माना जा रहा है, जबकि भारत में इसे पेट्रोल में मिलाया जा रहा है। क्या यह ग्रीन ऊर्जा का सपना अब ज़हरीला हो रहा है?
यूरोप इसे कैंसर का खतरा बता रहा है, जबकि भारत में इसे भविष्य का ईंधन माना जा रहा है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि Ethanol हमारे किसानों के लिए लाभकारी है। यह न केवल प्रदूषण को कम करेगा, बल्कि पेट्रोल के आयात पर निर्भरता भी घटाएगा। तो क्या जो यूरोप में खतरा है, वही भारत में भविष्य की ताकत बन सकता है? आइए समझते हैं कि यह रासायनिक विवाद क्यों बना है।
Ethanol क्या है?
Ethanol, वही एल्कोहल जो सैनिटाइज़र, परफ्यूम, दवाइयों और अब पेट्रोल में भी इस्तेमाल होता है। यह एक साधारण रासायनिक यौगिक है, जिसने चिकित्सा और ऊर्जा क्षेत्रों में क्रांति ला दी है। रिपोर्ट के अनुसार, यूरोप में Ethanol को Carcinogen यानी कैंसर पैदा करने वाला और Reprotoxic यानी प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाला पदार्थ घोषित करने पर विचार किया जा रहा है।
अगर ऐसा होता है, तो इसका प्रभाव अस्पतालों से लेकर हैंड सैनिटाइज़र तक, सभी उद्योगों पर पड़ेगा।
यूरोप में विवाद का कारण
यूरोपीय केमिकल एजेंसी ECHA Ethanol की सुरक्षा की समीक्षा कर रही है। उनकी Risk Assessment Committee तय करेगी कि इसे खतरनाक घोषित किया जाए या नहीं। यदि इसे कार्सिनोजेनिक घोषित किया जाता है, तो यूरोप में हैंड सैनिटाइज़र और चिकित्सा उत्पादों पर सख्त नियम लागू होंगे।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों को चिंता है कि यदि Ethanol पर प्रतिबंध लगाया गया, तो अस्पतालों में संक्रमण नियंत्रण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर 10 में से 1 मरीज अस्पताल में संक्रमण के कारण बीमार पड़ता है। Ethanol से बने हैंडरब इन संक्रमणों को कम करने में मदद करते हैं।
भारत में Ethanol: पेट्रोल में मिलावट या सुधार?
भारत में Ethanol का मामला अलग है। यहां इसे ग्रीन फ्यूल के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार 20% Ethanol blending का लक्ष्य रखती है, ताकि पेट्रोल पर निर्भरता कम हो सके। लेकिन सवाल यह है कि यदि यूरोप इसे रिस्की मानता है, तो क्या भारत की Ethanol नीति सुरक्षित है?
विपक्ष का आरोप है कि सरकार बिना किसी दीर्घकालिक अध्ययन के पेट्रोल में Ethanol मिला रही है। सरकार का दावा है कि भारत का Ethanol फ्यूल 100% सुरक्षित है और यह किसानों की आय बढ़ा रहा है।
दुनिया पर प्रभाव
यदि यूरोप Ethanol को खतरनाक घोषित करता है, तो इसका सीधा असर भारत पर पड़ेगा। भारत Ethanol-आधारित कई चिकित्सा और औद्योगिक उत्पादों का निर्यात करता है। यूरोपियन निर्णय अक्सर वैश्विक मानक तय करते हैं, इसलिए यह मामला केवल एक देश का नहीं, बल्कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था का है।
आगे का रास्ता
दुनिया आज एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है। एक ओर जलवायु परिवर्तन से लड़ाई है, दूसरी ओर वैज्ञानिक सावधानी। यदि Ethanol पर सख्त प्रतिबंध लगते हैं, तो इसका प्रभाव ऊर्जा संक्रमण और सार्वजनिक स्वास्थ्य दोनों पर पड़ेगा। नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि Ethanol नीति विज्ञान पर आधारित होनी चाहिए।
लेकिन सवाल यह है कि क्या वह रासायनिक यौगिक जो मानवता को बचा रहा था, अब खुद खतरा बन जाएगा? या यह एक और मामला है नियमों से डर का, विज्ञान से नहीं।
