26/11 मुंबई हमले की 17वीं वर्षगांठ: आतंकवाद के खिलाफ भारत की दृढ़ता

26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की 17वीं वर्षगांठ पर, भारत की सुरक्षा नीति और पाकिस्तान की भूमिका पर चर्चा की गई है। इस हमले ने 175 निर्दोष लोगों की जान ली और पूरे देश को दहशत में डाल दिया। आज, यह स्पष्ट है कि यह हमला पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी और आतंकी संगठनों के संयुक्त प्रयास का परिणाम था। क्या पाकिस्तान कभी इस हमले की जिम्मेदारी स्वीकार करेगा? जानें इस महत्वपूर्ण विषय पर और अधिक।
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26/11 मुंबई हमले की 17वीं वर्षगांठ: आतंकवाद के खिलाफ भारत की दृढ़ता

26/11 की काली रात का स्मरण

26 नवंबर 2008 की रात भारतीय इतिहास में एक ऐसा अध्याय बन गई है, जिसे याद करते ही आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई, जो अपनी जीवंतता और विविधता के लिए जानी जाती है, कुछ ही घंटों में गोलियों, ग्रेनेडों और आग की लपटों में तब्दील हो गई। ताज महल पैलेस होटल की दीवारें चीखों से गूंज उठीं, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर निर्दोष लोगों का खून बहा, और कैफे लियोपोल्ड तथा नरीमन हाउस में आतंक का साया छा गया। इस हमले में 175 निर्दोष लोग मारे गए और 300 से अधिक घायल हुए, जिससे पूरा देश दहशत और क्षोभ से भर गया। यह भारत पर एक सीधा आक्रमण था।


आतंकवाद का संगठित चेहरा

आज, सत्रह साल बाद, भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सुरक्षा विश्लेषण यह दर्शाते हैं कि यह हमला किसी एक आतंकी समूह की कार्रवाई नहीं थी, बल्कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई, लश्कर-ए-तैयबा और अल-कायदा के संयुक्त प्रयास का परिणाम था। एक विस्तृत भारतीय सुरक्षा डोजियर और विभिन्न स्वतंत्र जांचों ने यह स्पष्ट किया है कि 26/11 की यह हिंसा पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का सबसे भयानक उदाहरण थी।


पाकिस्तान की भूमिका

डोजियर में यह तथ्य दर्ज है कि यह हमला आईएसआई की 'एस ब्रांच' द्वारा संचालित था, जो कश्मीर से बाहर अपने आतंकवादी ऑपरेशन का दायरा बढ़ाना चाहती थी। ब्रिटिश पत्रकार कैथी स्कॉट-क्लार्क और एड्रियन लेवी की पुस्तक 'The Exile' में इस हमले की योजना में ओसामा बिन लादेन की भागीदारी का उल्लेख किया गया है। यह बैठक लश्कर-ए-तैयबा द्वारा आयोजित की गई थी, जो आईएसआई के संरक्षण में और अल-कायदा के प्रायोजन में हुई थी।


पाकिस्तान की अनदेखी

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ये खुलासे केवल भारत या पश्चिमी देशों द्वारा नहीं किए गए। पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी (FIA) के पूर्व प्रमुख तारिक खोसा ने 2015 में एक लेख में स्वीकार किया था कि 26/11 के सभी हमलावर लश्कर-ए-तैयबा के प्रशिक्षित आतंकवादी थे। उन्होंने बताया कि ये आतंकवादी सिंध प्रांत के प्रशिक्षण शिविरों में तैयार किए गए और कराची से हमले को नियंत्रित किया गया।


स्थानीय सहयोग का पहलू

मुंबई हमले का एक महत्वपूर्ण पहलू स्थानीय सहयोग था। जांचों से पता चला है कि दाऊद इब्राहिम गिरोह का समर्थन न होता, तो आतंकवादी भारतीय तट को पार नहीं कर पाते। दाऊद के लोग, जो डॉक क्षेत्रों में सक्रिय थे, ने कसाब और उसके साथियों को तटरक्षक की नजर से बचाकर सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाया। यह दर्शाता है कि आतंकवाद केवल सीमा पार से नहीं, बल्कि हमारे तंत्र की कमजोरियों का लाभ उठाकर भी प्रवेश करता है।


क्या पाकिस्तान जिम्मेदारी स्वीकार करेगा?

सत्रह वर्षों बाद सबसे बड़ा प्रश्न यही है— क्या पाकिस्तान कभी 26/11 की जिम्मेदारी स्वीकार करेगा? क्या वह हाफिज़ सईद और अन्य जिम्मेदारों को सजा देगा? उत्तर है— नहीं। पाकिस्तान की सत्ता-संरचना आतंकवाद को अपनी विदेश नीति का औजार मानती रही है, लेकिन अब यह नीति पूरी दुनिया के सामने बेनकाब हो चुकी है।


भारत की आतंकवाद के खिलाफ नीति

इन सत्रह वर्षों में, भारत ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी नीति को और भी कठोर किया है। सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयरस्ट्राइक, और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कूटनीतिक दबाव इसके उदाहरण हैं। आज दुनिया जानती है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ किसी भी स्तर पर समझौता नहीं करेगा। 26/11 केवल एक हमला नहीं था, बल्कि यह एक चेतावनी थी कि आतंकवाद किस प्रकार देशों की सीमाएँ ध्वस्त कर मानवीय सभ्यता को चुनौती देता है।