25 वर्षों में चिकित्सा क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन
चिकित्सा में बदलाव की कहानी
25 सालों में ऐसे बदला इलाज
पिछले 25 वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। वर्ष 2000 के आसपास चिकित्सा सेवाएं अपेक्षाकृत सीमित थीं, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है। अब मरीजों को डॉक्टर के पास जाने के लिए लंबी कतारों में खड़ा नहीं होना पड़ता और रिपोर्ट के लिए कई दिनों का इंतजार नहीं करना पड़ता। टेलीमेडिसिन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के कारण चिकित्सा प्रक्रिया पहले से कहीं अधिक सरल हो गई है। बीमारियों की पहचान समय पर हो रही है और सर्जरी से लेकर अंग प्रत्यारोपण तक की प्रक्रियाएं अब अधिक सुगम हो गई हैं।
25 साल पहले CT स्कैन और MRI केवल बड़े शहरों में उपलब्ध थे, लेकिन अब ये छोटे शहरों में भी उपलब्ध हैं। कई स्थानों पर 3 टी टेस्ला MRI मशीनें भी कार्यरत हैं, जो शरीर के अंदर की स्थिति का बेहतर स्कैन करती हैं, जिससे हृदय और मस्तिष्क सहित अन्य अंगों की छिपी बीमारियों का पता लगाना आसान हो गया है।
पहले PET स्कैन की सुविधाएं सीमित थीं, लेकिन अब यह उपलब्ध है और इसकी रिपोर्ट भी जल्दी मिल जाती है, जिससे कैंसर जैसी बीमारियों की पहचान में मदद मिलती है। पहले ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट आने में 4 से 5 दिन लगते थे, जबकि अब यह कुछ घंटों में प्राप्त हो जाती है। सर्जरी में अब बड़े चीरे नहीं लगते और मरीज को कई दिनों तक अस्पताल में रहने की आवश्यकता नहीं होती। रोबोटिक सर्जरी के माध्यम से ऑपरेशन कुछ ही मिनटों में हो जाता है और मरीज उसी दिन ठीक हो जाता है।
(रोबोटिक सर्जरी और एआई)
व्यक्तिगत देखभाल का नया युग
दिल्ली के आरएमएल हॉस्पिटल में मेडिसिन विभाग के निदेशक प्रोफेसर डॉ. सुभाष गिरि के अनुसार, पिछले 25 वर्षों में चिकित्सा प्रणाली में इतना बदलाव आया है कि अब मरीजों को हर बार अस्पताल जाने की आवश्यकता नहीं होती। टेलीमेडिसिन ने इस प्रक्रिया को सरल बना दिया है, विशेषकर कोरोना महामारी के दौरान। इसका सबसे बड़ा लाभ उन मरीजों को हो रहा है जिन्हें अस्पताल आना कठिन होता है, जैसे बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं।
अब मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता भी बढ़ी है। मानसिक बीमारियों के मरीजों के लिए टेलीमेडिसिन एक महत्वपूर्ण सहारा बन गई है।
डॉ. सुभाष बताते हैं कि अब बीमारियों की पहचान पहले से कहीं अधिक सरल हो गई है। छोटी समस्याओं से लेकर कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की पहचान तेजी से हो रही है। AI की मदद से कैंसर का पता लगाना संभव हो गया है। CT स्कैन और MRI मशीनें भी इस प्रक्रिया में सहायता कर रही हैं। पहले की मशीनों में अधिक रेडिएशन और कम स्पष्टता थी, लेकिन अब 3D और 4D इमेजिंग तकनीक उपलब्ध है। यह इतनी स्पष्ट है कि हृदय की धड़कन भी साफ दिखाई देती है।
डॉ. गिरि का कहना है कि अब चिकित्सा व्यक्तिगत हो गई है। इसका अर्थ है कि मरीज की उम्र, जेनेटिक्स और जीवनशैली को ध्यान में रखकर इलाज किया जाता है। मरीज भी अब पहले से अधिक जागरूक हो गए हैं और वे सेकंड ओपिनियन लेने में संकोच नहीं करते। अब वे समय पर इलाज कराते हैं और बीमारियों के प्रति जागरूक रहते हैं। AI की मदद से बीमारियों की पहचान भी सरल हो गई है। पिछले 25 वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र में यह एक बड़ा परिवर्तन है।
(25 साल में ऐसे बदला इलाज)
महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार
दिल्ली के आरएमएल हॉस्पिटल में महिला रोग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सलोनी चड्ढ़ा बताती हैं कि 25 साल पहले महिलाएं अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति उतनी जागरूक नहीं थीं, जितनी अब हैं। अब जागरूकता बढ़ी है और इलाज के तरीके भी विकसित हुए हैं। पहले पीरियड पेन, अनियमित पीरियड और स्तन में गांठ जैसी समस्याओं को नजरअंदाज किया जाता था, लेकिन अब महिलाएं इन समस्याओं के लिए जांच कराती हैं।
पहले महिलाओं के लिए अल्ट्रासाउंड और ब्लड टेस्ट की सुविधाएं सीमित थीं, और उच्च जोखिम वाली गर्भधारणाओं की पहचान में देरी होती थी। अब यह स्थिति बदल गई है। अब उच्च जोखिम वाली गर्भधारणाओं में भी डिलीवरी आसानी से हो जाती है। ऑपरेशन से डिलीवरी में अब केवल 15 से 20 मिनट का समय लगता है। अब बच्चे के लिए NIPT टेस्ट और डिजिटल फिटल मॉनिटरिंग जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
डॉ. सलोनी कहती हैं कि अब टेस्ट इतनी तेजी से होते हैं कि कुछ घंटों में रिपोर्ट मिल जाती है। उन बीमारियों की भी पहचान हो रही है जिनका पहले पता नहीं चल पाता था।
(टेस्ट की सुविधाएं)
बच्चों के लिए चिकित्सा सुविधाओं में सुधार
दिल्ली के आरएमएल हॉस्पिटल में पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के डॉ. पिनाकी देबनाथ बताते हैं कि पिछले 25 वर्षों में बच्चों के इलाज के लिए विशेष दवाएं और उपचार प्रोटोकॉल विकसित किए गए हैं। 25 से 30 साल पहले बच्चों को वही दवाएं दी जाती थीं जो वयस्कों के लिए होती थीं, बस उनकी डोज कम की जाती थी। अब बच्चों के लिए विशेष दवाएं उपलब्ध हैं। सिरप से लेकर दवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला बाजार में है। अब कई गंभीर बीमारियों से बचाव के लिए टीके भी उपलब्ध हैं। पहले नवजात और गंभीर बच्चों के लिए विशेष आईसीयू हर अस्पताल में नहीं होते थे, लेकिन अब लगभग हर अच्छे अस्पताल में यह सुविधा है।
डॉ. पिनाकी बताते हैं कि अब दवाओं की डोज बच्चों की उम्र और वजन के अनुसार निर्धारित की जाती है। वैक्सीनेशन में अब हेपेटाइटिस-B, न्यूमोकोकल, रोटावायरस जैसी वैक्सीन शामिल हैं, जिससे गंभीर बीमारियों की संख्या में कमी आई है। 25 साल पहले नवजात बच्चे का समय से पहले जन्म लेना एक चुनौती थी, लेकिन अब प्रीमैच्योर बेबी के लिए विशेष देखभाल केंद्र स्थापित हो गए हैं। अब समय से पहले जन्मे बच्चों की सर्वाइवल रेट कई गुना बढ़ गई है। यह पिछले 25 वर्षों में एक महत्वपूर्ण बदलाव है।
