2025 में विदेशी निवेशकों की रिकॉर्ड बिकवाली से भारतीय शेयर बाजार प्रभावित

वर्ष 2025 भारतीय शेयर बाजार के लिए विदेशी निवेशकों के दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण रहा, जिसमें उन्होंने 1.6 लाख करोड़ रुपये की रिकॉर्ड बिकवाली की। इस लेख में जानें कि कैसे वैश्विक व्यापार तनाव, अमेरिकी ब्याज दरें और घरेलू कारक इस बिकवाली के पीछे रहे। साथ ही, जानें कि घरेलू निवेशकों की भूमिका और भविष्य में विदेशी निवेशकों की संभावित वापसी के बारे में क्या कहा जा रहा है।
 | 
2025 में विदेशी निवेशकों की रिकॉर्ड बिकवाली से भारतीय शेयर बाजार प्रभावित

विदेशी निवेशकों की बिकवाली का प्रभाव

2025 में विदेशी निवेशकों की रिकॉर्ड बिकवाली से भारतीय शेयर बाजार प्रभावित

विदेशी निवेशकों की बिकवाली

वर्ष 2025 भारतीय शेयर बाजार के लिए विदेशी निवेशकों के दृष्टिकोण से सबसे चुनौतीपूर्ण वर्षों में से एक बन गया। इस वर्ष, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने भारतीय शेयरों से लगभग 1.6 लाख करोड़ रुपये निकाल लिए, जो कि अब तक का सबसे बड़ा वार्षिक आउटफ्लो है। इससे पहले, 2022 में करीब 1.21 लाख करोड़ रुपये की निकासी हुई थी, लेकिन 2025 का आंकड़ा उससे कहीं अधिक है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई वैश्विक और घरेलू कारण हैं, जिन्होंने विदेशी निवेशकों का विश्वास कमजोर किया।

2025 में अमेरिकी बॉंड यील्ड उच्च स्तर पर बनी रही। अमेरिका में उच्च ब्याज दरों के कारण वहां जोखिम रहित रिटर्न अधिक आकर्षक हो गया। इसका परिणाम यह हुआ कि वैश्विक पूंजी उभरते बाजारों से निकलकर विकसित देशों की ओर बढ़ गई। इसके अलावा, डॉलर की मजबूती ने भारत जैसे देशों में निवेश के रिटर्न को कम कर दिया। रुपये में उतार-चढ़ाव और हेजिंग की बढ़ती लागत ने भी विदेशी निवेशकों की चिंताओं को बढ़ाया।

वैश्विक व्यापार तनाव और जियोपॉलिटिक्स का प्रभाव

2025 के दौरान वैश्विक व्यापार तनाव भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा। विशेष रूप से अमेरिका द्वारा संभावित टैरिफ और वैश्विक सप्लाई चेन में रुकावट की आशंका ने निवेशकों को सतर्क कर दिया। ऊर्जा कीमतों में उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक तनाव ने भी जोखिम लेने की क्षमता को प्रभावित किया। इन परिस्थितियों में, विदेशी निवेशकों ने सुरक्षित बाजारों को प्राथमिकता दी और भारत जैसे उभरते बाजारों में अपनी हिस्सेदारी घटाई।

घरेलू बाजार में चुनौतियाँ

भारत में भी कुछ ऐसे कारक रहे जिन्होंने विदेशी निवेशकों को मुनाफा समेटने के लिए प्रेरित किया। कई क्षेत्रों में शेयरों की कीमतें काफी ऊंची हो गई थीं, जिससे विदेशी निवेशकों ने मुनाफावसूली को एक बेहतर विकल्प माना। हालांकि, बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारत की दीर्घकालिक विकास कहानी पर सवाल नहीं उठाता, बल्कि यह एक अस्थायी समायोजन है।

बिकवाली का दबाव

यदि महीनेवार आंकड़ों पर नजर डालें, तो 2025 में विदेशी निवेशकों ने 12 में से 8 महीनों में शेयर बेचे। जनवरी में ही लगभग 78 हजार करोड़ रुपये की बिकवाली हुई। मार्च तक यह आंकड़ा 1.16 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया। अप्रैल से जून के बीच थोड़ी राहत मिली और लगभग 38,600 करोड़ रुपये की खरीदारी हुई, लेकिन यह वापसी ज्यादा समय तक नहीं टिक सकी।

घरेलू निवेशकों की भूमिका

हालांकि, विदेशी निवेशकों की भारी बिकवाली के बावजूद भारतीय शेयर बाजार पूरी तरह से नहीं गिरा। इसकी मुख्य वजह घरेलू संस्थागत निवेशकों की मजबूत खरीदारी रही। म्यूचुअल फंड्स और एसआईपी के माध्यम से लगातार आ रहे खुदरा निवेशकों के पैसे ने बाजार को एक बड़ा सहारा दिया।

कर्ज में विदेशी निवेशकों का भरोसा

दिलचस्प बात यह है कि जहां विदेशी निवेशक शेयर बाजार से पैसा निकालते रहे, वहीं उन्होंने भारतीय डेट मार्केट में लगभग 59 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया। भारत का ग्लोबल बॉंड इंडेक्स में शामिल होना और ऊंची ब्याज दरें विदेशी निवेशकों को आकर्षित करती रहीं। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में ब्याज दरों में कटौती की संभावना को देखते हुए विदेशी निवेशक भारतीय सरकारी बॉंड में लंबी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं।

हालांकि, 2025 निराशाजनक रहा, लेकिन बाजार के जानकार 2026 को लेकर सकारात्मक उम्मीदें जता रहे हैं। यदि अमेरिका में ब्याज दरें घटती हैं, डॉलर कमजोर होता है और भारत की आर्थिक वृद्धि मजबूत रहती है, तो विदेशी निवेशकों की वापसी संभव है। इसके साथ ही भारत-अमेरिका के बीच व्यापार समझौता और घरेलू स्तर पर बजट सुधार भी निवेश के माहौल को बेहतर बना सकते हैं।

यह भी पढ़ें- 2025 में भारत ने टैक्स सिस्टम बदला, 1 अप्रैल से लागू होगा नया इनकम टैक्स कानून