1947 का भारत विभाजन: महिलाओं पर हुई हिंसा का काला सच

1947 का भारत विभाजन एक भयानक घटना थी, जिसमें लाखों लोग बेघर हुए और महिलाओं के खिलाफ सुनियोजित हिंसा हुई। इस लेख में हम विभाजन के दौरान महिलाओं पर हुए अत्याचारों की अनकही कहानियों को उजागर करते हैं। जानें कैसे धार्मिक नफरत और पितृसत्तात्मक सोच ने इस त्रासदी को जन्म दिया।
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1947 का भारत विभाजन: महिलाओं पर हुई हिंसा का काला सच

भारत विभाजन का दर्दनाक इतिहास

1947 का भारत विभाजन: महिलाओं पर हुई हिंसा का काला सच1947 में भारत का विभाजन एक दुखद ऐतिहासिक घटना थी। इस विभाजन के दौरान महिलाओं के खिलाफ हुई सुनियोजित हिंसा एक कड़वा सच है।


कई बार यह सवाल उठता है कि यदि विभाजन इतना रक्तरंजित था, तो यह हुआ क्यों? जमीन के बंटवारे ने अचानक क्यों इतना बड़ा नरसंहार और जातीय संघर्ष उत्पन्न किया?


1947 का विभाजन केवल एक राजनीतिक सीमा का निर्धारण नहीं था, बल्कि यह एक भयानक त्रासदी थी। इस दौरान 2 करोड़ से अधिक लोग बेघर हुए, लगभग 20 लाख लोग मारे गए, और अनगिनत परिवार और समुदाय बिखर गए। लेकिन इस त्रासदी का एक और पहलू है, जो महिलाओं पर हुई संगठित हिंसा है।


उस समय लगभग 75,000 से 1,00,000 महिलाओं का अपहरण किया गया। यह हिंसा अचानक नहीं हुई, बल्कि यह धार्मिक नफरत और पितृसत्तात्मक सोच का परिणाम थी। मुस्लिम गिरोहों ने हिंदू और सिख महिलाओं का अपहरण किया, उनके साथ बलात्कार किया, और कई को जबरन धर्म परिवर्तन कराया। गर्भवती महिलाओं के साथ भी अत्याचार किए गए।


ट्रेनों को रोका गया, और महिलाओं की लाशें नग्न अवस्था में पटरियों पर फेंकी गईं। अमृतसर और लाहौर में महिलाओं को सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र घुमाया गया और जिंदा जलाया गया।


जब पंजाब में इस हिंसा की खबरें फैलीं, तो कई सिख परिवारों ने सामूहिक आत्महत्या का रास्ता अपनाया। रावलपिंडी के थुआ खालसा गाँव में महिलाओं ने कुएँ में कूदकर जान दी।


बंगाल, असम और त्रिपुरा में भी स्थिति भयावह थी। बंगाल में जमींदार परिवारों की लड़कियों का अपहरण हुआ। एक महिला ने बताया कि कैसे उसे और उसकी बहन को उठाया गया।


15 साल से कम उम्र की लड़कियों को घरेलू नौकर या सेक्स वर्कर बनाकर सीमा पार ले जाया गया। कई लड़कियों का दिन में 40-60 बार बलात्कार किया गया।


1947 के सिलहट जनमत संग्रह के बाद हिंदू बंगाली अचानक 'विदेशी' बन गए। मुस्लिम लीग के गुंडों ने हिंदू घरों पर हमले किए।


1950 में ढाका, बरिसाल, और चिटगाँव में फिर से दंगे हुए। कई महिलाएँ असम के शरणार्थी कैंपों में आईं, कुछ गर्भवती थीं।


त्रिपुरा और चकमा जनजाति की महिलाएँ भी गैंग रेप की शिकार हुईं। एक 13 साल की चकमा लड़की ने बताया कि उसके पिता ने उसे बचाने के लिए जहर देने की कोशिश की।


इन महिलाओं की कहानियाँ अक्सर इतिहास की किताबों में नहीं मिलतीं, लेकिन उनका मौन आज भी यह याद दिलाता है कि विभाजन केवल सीमाओं का बंटवारा नहीं था, बल्कि यह महिलाओं के शरीर पर लिखा गया खून का इतिहास था।