17 नवंबर 2025 का पंचांग: प्रदोष व्रत और शुभ मुहूर्त
17 नवंबर 2025 का पंचांग
17 नवंबर 2025 का पंचांग: हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह दिन सोमवार को मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के साथ मनाया जाएगा। यह तिथि भगवान शिव के प्रदोष व्रत के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है, जब भक्त शाम को विशेष पूजा करते हैं।
इस दिन लोग अपने दैनिक कार्यों को पंचांग के अनुसार व्यवस्थित करते हैं, ताकि ग्रहों की स्थिति उनके अनुकूल रहे। दिल्ली-एनसीआर में ठंड के मौसम के बीच, यह दिन धार्मिक उत्साह का संचार कर सकता है, विशेषकर उन परिवारों के लिए जो व्रत और पूजा की परंपरा का पालन करते हैं।
पंचांग के अनुसार, त्रयोदशी तिथि सुबह से शुरू होकर अगले दिन तक चलेगी। नक्षत्र का नाम हस्त है, जो रचनात्मक कार्यों और यात्रा के लिए शुभ माना जाता है। योग में व्याघात का प्रभाव रहेगा, जो चुनौतियों का सामना करने का संकेत देता है, लेकिन सावधानी से कार्य करने पर सफलता संभव है।
करण वरीयान रहेगा, जो निर्णय लेने में स्थिरता प्रदान करता है। चंद्रमा कन्या राशि में रहेगा, जिससे भावुक निर्णय लेते समय सतर्क रहना आवश्यक है। ये सभी तत्व मिलकर दिन को संतुलित बनाते हैं, जिसमें आध्यात्मिक झुकाव अधिक दिखाई देता है।
शुभ और अशुभ समय
शुभ और अशुभ समय:
दिल्ली में सूर्योदय सुबह 6:35 बजे और सूर्यास्त शाम 5:25 बजे होगा। चंद्रोदय रात 8:10 बजे और चंद्रास्त अगले दिन सुबह 8:45 बजे होगा। दिग्न विजय उत्तर दिशा में रहेगी, जो उत्तर की ओर यात्रा को शुभ मानती है।
हालांकि, राहु काल पर ध्यान देना आवश्यक है, जो दोपहर 12 बजे से 1:30 बजे तक रहेगा। इस समय कोई नया कार्य शुरू न करें, अन्यथा बाधाएं आ सकती हैं। यमगंड और गुलिक काल क्रमशः सुबह 7:30 से 9 बजे और दोपहर 3 से 4:30 बजे तक रहेंगे।
अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11:50 से 12:40 बजे तक सबसे शुभ रहेगा, जब विवाह, गृह प्रवेश या नामकरण जैसे संस्कार किए जा सकते हैं। ब्रह्म मुहूर्त रात 4:20 से 5:10 बजे तक ध्यान और जप के लिए आदर्श है।
प्रदोष व्रत के लिए पारण समय शाम 6:45 से 8:15 बजे के बीच है, जब शिवलिंग पर दूध और बेलपत्र चढ़ाना विशेष फलदायी होता है। ये समय सारणियां न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि व्यस्त जीवन में रूटीन सेट करने में भी मदद करती हैं।
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत:
17 नवंबर को पड़ने वाला प्रदोष व्रत शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह व्रत हर महीने के सोमवार को होने वाले प्रदोष से संबंधित है, लेकिन त्रयोदशी पर इसका महत्व और बढ़ जाता है। पूजा के दौरान रुद्राभिषेक और महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है। कई मंदिरों में विशेष भजन-कीर्तन का आयोजन होता है, जो समुदाय को एकजुट करता है।
हालांकि, स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी जरूरी है – ठंडे मौसम में हल्का भोजन और पर्याप्त पानी का सेवन आवश्यक है। पंचांग इस तरह की जानकारी देकर लोगों को सही दिशा दिखाता है, बिना किसी अतिशयोक्ति के।
