सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या मुसलमानों के अधिकारों पर स्पष्ट किया अपना रुख
सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या मुसलमानों के भारत में निवास के अधिकार पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल भारतीय नागरिकों को ही भारत में रहने का अधिकार है। याचिकाकर्ताओं ने रोहिंग्या के नरसंहार का हवाला देते हुए उन्हें शरणार्थी का दर्जा देने की मांग की, जबकि सरकार ने इसे अस्वीकार किया। जानें इस मामले में अदालत का क्या निर्णय है और आगे की सुनवाई कब होगी।
May 10, 2025, 20:08 IST
|

सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या मुसलमानों के संबंध में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि भारत में निवास का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है। अवैध प्रवासियों के मामले में कानून के अनुसार ही कार्रवाई की जाएगी। 8 मई को, सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या मुसलमानों से संबंधित याचिकाओं पर सख्त रुख अपनाया। अदालत ने दिल्ली से रोहिंग्या प्रवासियों के कथित निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। जस्टिस सूर्य़कांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस कोटेश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि भारत में रहने का अधिकार केवल नागरिकों को है। विदेशी नागरिकों के साथ विदेशी अधिनियम के अनुसार व्यवहार किया जाएगा, चाहे उन्हें शरणार्थी का दर्जा मिला हो या नहीं।
याचिकाकर्ताओं का तर्क
वरिष्ठ वकील कॉलिन गुंजालविस और प्रशांत भूषण ने याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि रोहिंग्या म्यांमार में नरसंहार का शिकार हो रहे हैं और संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें शरणार्थी का दर्जा दिया है। इसलिए, उनका तर्क था कि उन्हें भारत में रहने का अधिकार मिलना चाहिए। दूसरी ओर, भारत सरकार के सॉ़लिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन का हिस्सा नहीं है और यूएनएचआरसी द्वारा दिया गया शरणार्थी दर्जा भारत के लिए बाध्यकारी नहीं है। पीठ को बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले असम और जम्मू-कश्मीर से रोहिंग्या मुसलमानों के निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जब केंद्र ने उनकी उपस्थिति को लेकर सुरक्षा चिंताओं का उल्लेख किया था।
पुलिस कार्रवाई पर अदालत की चिंता
सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि कुछ शरणार्थियों, जिनके पास यूएनएचसीआर कार्ड था, को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और बृहस्पतिवार को सुनवाई होने के बावजूद उन्हें निर्वासित कर दिया। न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि यदि ये सभी विदेशी हैं, तो उनके साथ विदेशी अधिनियम के अनुसार ही व्यवहार किया जाना चाहिए। अदालत ने मामले की अंतिम सुनवाई करने का निर्णय लिया और इसे 31 जुलाई के लिए स्थगित कर दिया।