सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट मामले में लिया महत्वपूर्ण निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट के मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसमें 72 वर्षीय महिला वकील को धोखाधड़ी से बचाने के लिए आरोपियों को जमानत देने से रोक दिया गया है। न्यायालय ने कहा कि असामान्य घटनाओं के लिए असामान्य हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। इस मामले में पीड़ित महिला की जीवनभर की जमा पूंजी चली गई है। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और कोर्ट के आदेशों के बारे में।
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महिला वकील के मामले में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट मामले में लिया महत्वपूर्ण निर्णय

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट के एक मामले में अभूतपूर्व कदम उठाते हुए 72 वर्षीय महिला वकील को डिजिटल तरीके से गिरफ्तार करने वाले आरोपियों को जमानत देने से रोक दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि कोई भी अदालत विजय खन्ना और अन्य सह-अभियुक्तों को रिहा नहीं कर सकती।

कोर्ट ने कहा कि यदि आरोपियों को राहत की आवश्यकता है, तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट का रुख करना होगा। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जोयमाल्या बाग्ची की पीठ ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा कि असामान्य घटनाओं के लिए असामान्य हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।

पीठ के प्रमुख न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि वे किसी की स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इस मामले में विशेष आदेश की आवश्यकता है। ऐसे मामलों में सख्ती से निपटने की आवश्यकता है ताकि सही संदेश जाए।

सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) द्वारा दाखिल हस्तक्षेप अर्जी में बुजुर्ग महिला वकील के साथ धोखाधड़ी का मुद्दा उठाया गया था। एसोसिएशन के अध्यक्ष विपिन नायर ने बताया कि महिला की जीवनभर की जमा पूंजी चली गई है।

विधायी जमानत की प्रक्रिया के तहत, यदि किसी आरोपी के खिलाफ निर्धारित समय में चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है, तो उसे जमानत मिल जाती है। कोर्ट ने इस मुद्दे पर ध्यान देते हुए आदेश दिया कि विजय खन्ना और अन्य अभियुक्तों को जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा।

विपिन नायर ने कोर्ट को बताया कि पुलिस आरोपियों से 42 लाख रुपये वसूलने की स्थिति में थी, लेकिन प्रक्रियागत शून्यता के कारण पीड़ित को धनराशि नहीं मिल पाई। पीठ ने कहा कि जल्द ही पूरे देश के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे।

ठग बुजुर्गों को निशाना बना रहे हैं। नायर ने कहा कि ठगों ने पीड़ित महिला को इस तरह से भरोसे में लिया कि उन्होंने अपनी एफडी तोड़कर पैसे दे दिए। कोर्ट ने आश्वासन दिया कि वे इस मामले में उचित कदम उठाएंगे।

इसके अलावा, कोर्ट ने न्यायमित्र एनएस नप्पिनाई को निर्देश दिया कि वे एक विज्ञापन जारी करें ताकि लोग इस तरह के अपराधों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें। सुनवाई के दौरान एक वकील ने बताया कि भारत ने साइबर क्राइम से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संघ की संधि को स्वीकार नहीं किया है। इस पर पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से विचार करने को कहा। मामले की अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी।

डिजिटल अरेस्ट में अपराधी लोगों को कोर्ट और जांच एजेंसियों का भय दिखाकर उन्हें पैसे ट्रांसफर करने के लिए मजबूर करते हैं। हरियाणा के एक पीड़ित दंपति की चिट्ठी पर कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की है।