संस्कृति और आचरण: सनातन धर्म की पहचान को पुनर्जीवित करना
सनातन पर चर्चा नहीं, आचरण की प्रतिबद्धता आवश्यक

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य एक समग्र ईश्वरीय उद्देश्य के तहत संचालित होता है। यह एक ऐसा प्रकल्प है जो सभी के कल्याण के लिए समर्पित है, और इसी कारण इसे ईश्वरीय कार्य माना जा सकता है। स्वामी अवधेशानन्द गिरि महाराज ने स्वदेश से बातचीत में यह स्पष्ट किया कि संघ का उद्देश्य मानवता के कल्याण के लिए है।
महामंडलेश्वर जी वर्तमान में भिंड के दंदरौआ धाम में भागवत कथा का आयोजन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह एक ऐतिहासिक अवसर है, जब हम संघ के शताब्दी वर्ष का साक्षी बन रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि संघ का कार्य ईश्वरीय कार्य के समान न होता, तो यह गौरवमयी यात्रा संभव नहीं होती।
स्वामी जी ने कहा कि संघ ने वैश्विक कल्याण के लिए कार्य किया है, जिसमें राष्ट्र और सभी समुदायों का कल्याण भी शामिल है। उन्होंने यह भी बताया कि जैसे ईश्वर की सत्ता शाश्वत है, वैसे ही संघ का कार्य भी निरंतरता के साथ आगे बढ़ता रहेगा। उन्होंने संघ परिवार को शताब्दी वर्ष की शुभकामनाएं दीं।
चर्चा के दौरान स्वामी जी ने चिंता व्यक्त की कि आजकल सनातन पर चर्चा तो होती है, लेकिन अधिकांश लोग केवल बातों तक सीमित रहते हैं। उन्होंने कहा कि यह आवश्यक है कि हम अपने आचरण में ईमानदारी से सनातन के सिद्धांतों का पालन करें। आज लोग अपनी सनातनी पहचान से दूर भाग रहे हैं।
उन्होंने सवाल उठाया कि क्या आपके व्यक्तित्व में कोई सनातनी चिन्ह दिखाई देता है? यह संकोच की प्रवृत्ति हमारे लिए संकट बन गई है। हर सनातनी के माथे पर तिलक क्यों नहीं होना चाहिए? उन्होंने यह भी कहा कि हमारे पारंपरिक पहनावे को अपनाने में कोई रोक नहीं है।
पहनावे के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि पोशाक से ही पता चलता है कि कौन कौन सी पहचान के लोग हैं, लेकिन किसी सनातनी की पहचान स्पष्ट नहीं होती। यह स्थिति अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। स्वामी जी ने कहा कि जो लोग स्वयं को सनातनी मानते हैं, उन्हें अंग्रेज़ी और अन्य पहचान से बाहर निकलना चाहिए।
युवाओं को आगे आना होगा
आचार्य श्री ने कहा कि भारत की युवा जनसंख्या को सनातन धर्म से जोड़ने की चुनौती है। समाज के हर जागरूक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अपने परिवार और समाज में सनातन के प्रति गर्व का भाव पैदा करे। यह कार्य केवल बातों से नहीं होगा, बल्कि आचार, व्यवहार और कर्म में सत्यनिष्ठा से संभव होगा।
दक्षिण भारतीयों से सीखने की आवश्यकता
आचार्य अवधेशानन्द जी ने कहा कि अन्य हिस्सों के हिंदुओं को दक्षिण भारतीयों से सीखने की आवश्यकता है। वहां के लोग अपनी पारंपरिक पोशाक पहनते हैं और तिलक लगाते हैं, जबकि अन्य हिस्सों में लोग इससे संकोच करते हैं। समाज का एक बड़ा वर्ग आधुनिकता की गलत परिभाषा को अपनाने लगा है।
