शिवपुरी में संघ कार्य का इतिहास: संघर्ष और समर्पण की कहानी

शिवपुरी में संघ कार्य का इतिहास एक प्रेरणादायक कहानी है, जिसमें स्वयंसेवकों ने सत्ता के दमन के बावजूद अपने विचारों के प्रति समर्पण दिखाया। 1975 में सत्याग्रह की योजना से लेकर राजमाता सिंधिया द्वारा भूमि दान तक, यह लेख संघ के विकास और संघर्ष की यात्रा को दर्शाता है। जानें कैसे शिवपुरी में संघ कार्य ने अपने पांव जमाए और कैसे विभिन्न स्वयंसेवकों ने इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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संघ कार्य का प्रारंभ और संघर्ष

शिवपुरी में संघ कार्य का इतिहास: संघर्ष और समर्पण की कहानी


सत्ता के दमन के बावजूद स्वयंसेवक अपने कार्य में लगे रहे। शिवपुरी में भी इस दमन का प्रभाव देखा गया, जहां कई स्वयंसेवकों जैसे सुशील बहादुर अहान, धनश्याम भसीन, और अन्य को गिरफ्तार किया गया। फिर भी, ये स्वयंसेवक अपने विचारों के प्रति समर्पित रहे।


14 नवंबर 1975 को सत्याग्रह की योजना बनाई गई। उस समय विभान प्रचारक लक्ष्मण तथा आर्गकर और मंत्री वसंतराव निगुडीकर ने शिवपुरी में आवास किया। इसके बाद संघ कार्य में और स्वयंसेवक शामिल हुए।


संघ का इतिहास और विकास

संघ का कार्य बहुत पुराना है। द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोल ने इस क्षेत्र का कई बार दौरा किया। उनके प्रेरणादायक शब्दों से शिवपुरी में स्वयंसेवक संघ कार्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित हुए।


पुरुषोत्तम गौतम और वीडर निमास शर्मा ने बताया कि शिवपुरी में संघ कार्य की शुरुआत 1939-40 में नागपुर से पथ-जाधवराव जी द्वारा की गई थी। उन्होंने पुरानी अन्ना मंडी में पहली शाखा स्थापित की।


सत्याग्रह और संघ का विस्तार

1948 में संघ पर झूठे आरोपों के चलते देशभर में अत्याचार का दौर शुरू हुआ। इस दौरान कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया। 1949 में प्यारेलाल खंडेलवाल प्रचारक के रूप में आए और संघ का विस्तार किया।


शिवपुरी में पहला संघालय हनुमान मंदिर के ऊपर बनाया गया था, जो चारों ओर से खुला था। इसके बाद कई स्थानों पर कार्यालय स्थानांतरित हुए, अंततः राघवेन्द्र नगर में संघ का स्थायी कार्यालय स्थापित हुआ।


राजमाता सिंधिया का योगदान

राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने शिवपुरी में संघ कार्यालय के लिए भूमि दान की। इस भूमि को प्राप्त करने के लिए बाबूलाल शर्मा और जगदीश स्वरूप निगम ने राजमाता से मुलाकात की।