रानी लक्ष्मीबाई: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अद्वितीय नायिका
रानी लक्ष्मीबाई की जयंती का महत्व

आज हम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जयंती मनाते हैं, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने अद्वितीय साहस और मातृभूमि के प्रति अटूट प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत किया।
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म मणिकर्णिका (मनु) के नाम से हुआ था। उन्होंने शास्त्रों के साथ-साथ शस्त्रों की भी शिक्षा ली। उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव से हुआ, जिसके बाद वे लक्ष्मीबाई के नाम से जानी गईं। रानी ने न केवल झांसी का शासन संभाला, बल्कि घुड़सवारी, तलवारबाजी और सैन्य प्रशिक्षण में भी अपनी दक्षता दिखाई।
ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष
जब राजा गंगाधर राव का निधन हुआ, लॉर्ड डलहौजी ने दत्तक पुत्र दामोदर राव को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया और राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने की घोषणा की। इस समय रानी लक्ष्मीबाई ने गर्जना की: 'मैं अपनी झाँसी नहीं दूंगी।'
यह केवल एक वाक्य नहीं था, बल्कि भारतीय स्वाभिमान का प्रतीक बन गया।
रानी ने पुरुषों और महिलाओं को एकत्रित कर सेना का गठन किया। झलकारीबाई जैसी सहयोगियों के साथ उन्होंने ब्रिटिश सेना के खिलाफ अदम्य साहस का प्रदर्शन किया। भारी संख्या और आधुनिक हथियारों से लैस ब्रिटिश सेना के सामने मुट्ठीभर सैनिकों के साथ उनका डटे रहना उनकी नेतृत्व क्षमता और साहस का प्रमाण है।
साहस और मातृत्व का प्रतीक
अपने पुत्र दामोदर राव को पीठ पर बांधकर घोड़े पर सवार होकर निकलना उनके साहस और मातृत्व की पराकाष्ठा थी। तात्या टोपे जैसे वीरों के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। ग्वालियर में वीरगति प्राप्त करने से पहले उनके अंतिम युद्ध की शौर्यगाथा ने जनरल ह्यूरोज को यह कहने पर मजबूर कर दिया 'विद्रोहियों में वह अकेली मर्द थी।'
मात्र 29 वर्ष की आयु में 18 जून 1858 को उनका बलिदान हुआ, लेकिन उनका अदम्य साहस और मातृभूमि के प्रति प्रेम आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
