मोहन भागवत ने संघ की पहचान और उद्देश्य पर की चर्चा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में कोलकाता में एक कार्यक्रम में संघ की पहचान और उद्देश्य पर महत्वपूर्ण विचार साझा किए। उन्होंने संघ के गठन का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा कि यह केवल राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के लिए नहीं, बल्कि हिंदू समाज के उत्थान के लिए स्थापित हुआ था। भागवत ने भारतीय इतिहास और डॉ. हेडगेवार के जीवन से उदाहरण देते हुए समाज को संगठित और सशक्त बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका यह भाषण संघ की भूमिका और भविष्य के नेतृत्व में भारत की स्थिति पर प्रकाश डालता है।
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संघ की पहचान पर प्रकाश

मोहन भागवत ने संघ की पहचान और उद्देश्य पर की चर्चा


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में एक कार्यक्रम में स्पष्ट किया कि संघ को केवल भारतीय जनता पार्टी से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। कोलकाता में आयोजित RSS 100 व्याख्यान माला के दौरान उन्होंने संघ के उद्देश्य और पहचान पर विस्तार से चर्चा की।


डॉ. भागवत ने बताया कि संघ का निर्माण किसी राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का परिणाम नहीं था। यह हिंदू समाज के सामूहिक उत्थान, संगठन और सांस्कृतिक पहचान को सशक्त बनाने के लिए स्थापित हुआ। उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना का मूल संदेश है 'भारत माता की जय'। भारत केवल एक भौगोलिक राष्ट्र नहीं है, बल्कि यह एक विशेष संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। हमारा लक्ष्य है कि हम इस परंपरा को संरक्षित करें और भारत को फिर से विश्व गुरु के रूप में स्थापित करें।


संघ का उद्देश्य

भागवत ने बार-बार यह स्पष्ट किया कि संघ का गठन राजनीतिक उद्देश्यों के लिए नहीं, बल्कि समाज को संगठित करने के लिए किया गया था। उन्होंने बताया कि संघ एक सेवा संस्था है, लेकिन इसकी सेवाएं समाज तक सीमित नहीं हैं।


इतिहास से सीख

भारतीय इतिहास पर चर्चा करते हुए, डॉ. भागवत ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस के निधन के बाद अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष धीमा हो गया। हालांकि, समाज सुधार की लहर, जो राजा राम मोहन राय से शुरू हुई थी, निरंतर चलती रही। उन्होंने इसे समुद्र के बीच एक द्वीप के रूप में वर्णित किया, जो हर कठिनाई के बावजूद आगे बढ़ता रहा। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हमें अपने समाज को और अधिक संगठित और सशक्त बनाना होगा ताकि भारत वैश्विक नेतृत्व की भूमिका में खुद को स्थापित कर सके।


डॉ. हेडगेवार का उदाहरण

अपने भाषण में, भागवत ने संघ के संस्थापक डॉ. के. बी. हेडगेवार का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि हेडगेवार के माता-पिता प्लेग के रोगियों की सेवा करते थे और इसी दौरान उनकी मृत्यु हो गई। डॉ. हेडगेवार बचपन से ही प्रतिभाशाली छात्र रहे, लेकिन जीवन के प्रारंभिक चरण में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। भागवत ने बताया कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गांव-गांव जाकर लोगों को एकजुट किया और कभी स्थिर नौकरी नहीं की। उनके इस समर्पण के कारण उन पर राजद्रोह का आरोप भी लगाया गया था।


संघ की भूमिका आज

डॉ. मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि संघ की भूमिका केवल संगठन करना नहीं है, बल्कि समाज को मजबूत और जिम्मेदार नागरिक बनाने की दिशा में भी काम करना है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत वह देश है, जिस पर दुनिया की नजरें भविष्य के नेतृत्व के लिए टिकी हुई हैं।