भीष्म पितामह का इच्छामृत्यु: सूर्य के उत्तरायण का महत्व
महाभारत युद्ध और भीष्म की इच्छामृत्यु
महाभारत के युद्ध में 18 दिनों तक चली भीषण लड़ाई ने कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं दी हैं। यह युद्ध अधर्म पर धर्म की विजय के लिए लड़ा गया था, और इसके दौरान भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया। भीष्म पितामह ने बाणों की शैय्या पर 58 दिनों तक सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया। उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था, इसलिए उन्होंने एक विशेष दिन की प्रतीक्षा की। इस दौरान उन्होंने बाणों पर लेटकर कठिनाई भोगी, लेकिन इसके पीछे उनके कुछ महत्वपूर्ण कारण थे।
सूर्य के उत्तरायण का महत्व
भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया। सूर्य 6 महीने उत्तरायण और 6 महीने दक्षिणायन रहते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे उत्तरायण कहा जाता है। शास्त्रों में इसे 'देवताओं का दिन' माना जाता है, जबकि दक्षिणायन को 'देवताओं की रात' कहा जाता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति उत्तरायण में शरीर त्यागता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महाभारत युद्ध के दौरान भीष्म का निर्णय
महाभारत युद्ध के 10वें दिन अर्जुन ने भीष्म को बाणों से घायल किया, जबकि सूर्य उस समय दक्षिणायन में थे। भीष्म जानते थे कि दक्षिणायन में मृत्यु होने पर आत्मा को अंधकार के मार्ग से गुजरना पड़ता है। इसलिए, उन्होंने इच्छामृत्यु का वरदान लेकर सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया।
युधिष्ठिर को दिए गए उपदेश
भीष्म पितामह ने 58 दिनों तक बाणों की शैय्या पर रहते हुए युधिष्ठिर और अन्य पांडवों को राजधर्म और जीवन-मृत्यु के रहस्यों का ज्ञान दिया। उन्होंने युधिष्ठिर को 'राजधर्म' और 'विष्णु सहस्त्रनाम' का उपदेश भी दिया।
