भारतीय रुपये की गिरावट: अमेरिका-भारत व्यापार वार्ता का असर
भारतीय रुपये की स्थिति
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता अभी तक नहीं हुआ है, लेकिन वार्ताओं का सिलसिला जारी है। अमेरिका और भारत के व्यापार में रुकावटों के साथ-साथ फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें कम होने का प्रभाव भारतीय रुपये पर स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। अमेरिका से मिली दो महत्वपूर्ण खबरों ने रुपये की स्थिति को कमजोर कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप शुक्रवार को भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले अपने सबसे निचले स्तर 89.48 पर पहुंच गया। यह स्तर सितंबर के अंत और इस महीने की शुरुआत में 88.80 के पिछले निचले स्तर से भी नीचे है। उस दिन रुपये में 0.1% की गिरावट आई।
करेंसी पर दबाव
इंटरबैंक ऑर्डर-मैचिंग सिस्टम पर रुपये की स्थिति और भी खराब हो गई, जहां इसे आखिरी बार 89.34 पर कोट किया गया। अगस्त के अंत में अमेरिकी टैरिफ लागू होने के बाद से रुपये पर दबाव बढ़ा है। विदेशी निवेशकों ने अब तक भारतीय शेयर बाजार से $16.5 बिलियन निकाल लिए हैं, जिससे यह करेंसी इस वर्ष की सबसे कमजोर एशियाई करेंसी बन गई है।
मार्केट की स्थिति
शुक्रवार को ट्रेडर्स ने बताया कि केंद्रीय बैंक ने हाल के सत्रों में 88.80 के स्तर की रक्षा की थी, लेकिन अब उसने अपनी दखलंदाजी कम कर दी है। इससे रुपये पर और अधिक दबाव बढ़ गया है, जो पहले से ही आयातकों की हेजिंग रुचि और निर्यातकों की सुस्त गतिविधियों से प्रभावित है। एक निजी क्षेत्र के बैंक के ट्रेडर ने कहा कि 88.80 के स्तर के टूटने के बाद वॉल्यूम में अचानक वृद्धि हुई।
शेयर बाजार का हाल
भारतीय शेयर बाजार की स्थिति भी कमजोर रही है। रुपये की गिरावट ने बाजार को भी प्रभावित किया है। शुक्रवार को भारतीय शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स और निफ्टी दोनों में गिरावट आई। 30 कंपनियों वाला सेंसेक्स लगभग 400 अंकों की गिरावट के साथ बंद हुआ, जबकि निफ्टी 50 इंडेक्स, जो गुरुवार को अपने उच्चतम स्तर के करीब पहुंचा था, भी गिर गया।
