बांग्लादेश में हिंदू युवक की हत्या: भीड़ ने पीट-पीटकर ली जान

बांग्लादेश में एक बार फिर से धार्मिक हिंसा की एक घटना सामने आई है, जिसमें एक हिंदू युवक को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। यह घटना राजबाड़ी जिले के होसेनडांगा गांव में हुई। मृतक, अमृत मंडल, पर जबरन वसूली का आरोप था। इससे पहले, एक अन्य हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की भी हत्या की गई थी, जिसके बाद हिंसा भड़की। जांच में यह सामने आया है कि दीपू पर लगाए गए आरोप झूठे थे। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और इसके पीछे के कारण।
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बांग्लादेश में हिंसा की एक और घटना

बांग्लादेश में हिंदू युवक की हत्या: भीड़ ने पीट-पीटकर ली जान

ढाका। बांग्लादेश में एक बार फिर से एक हिंदू युवक को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला है। यह घटना बुधवार रात लगभग 11:00 बजे राजबाड़ी जिले के होसेनडांगा गांव में हुई। पुलिस ने मृतक की पहचान 29 वर्षीय अमृत मंडल उर्फ सम्राट के रूप में की है।

पुलिस के अनुसार, अमृत को जबरन वसूली के आरोप में भीड़ ने मार डाला। वह होसेनडांगा गांव का निवासी था। पुलिस ने बताया कि अमृत के खिलाफ पांगशा पुलिस स्टेशन में दो मामले दर्ज हैं, जिनमें से एक हत्या का मामला भी शामिल है। इससे पहले, 18 दिसंबर को ढाका के पास एक हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की भीड़ ने हत्या कर दी थी, और बाद में उसे पेड़ पर लटकाकर जला दिया गया था।

अमृत पर गिरोह बनाकर जबरन वसूली का आरोप

स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, अमृत पर एक आपराधिक गिरोह बनाने का आरोप लगाया गया है। वह लंबे समय से जबरन वसूली और अन्य आपराधिक गतिविधियों में संलग्न था। भारत में लंबे समय तक छिपने के बाद, वह हाल ही में अपने गांव लौटा था। बताया गया है कि अमृत ने गांव के निवासी शाहिदुल इस्लाम से जबरन वसूली की रकम मांगी थी।

24 दिसंबर की रात, अमृत और उसके साथी शाहिदुल के घर पैसे लेने गए थे। जब घरवालों ने चोर-चोर चिल्लाकर शोर मचाया, तो स्थानीय लोग मौके पर पहुंचे और अमृत की पिटाई कर दी। उसके अन्य साथी भागने में सफल रहे, जबकि सलीम को हथियारों के साथ पकड़ा गया।

दीपू दास की ईशनिंदा के झूठे आरोप में हत्या

18 दिसंबर की रात हुई हिंसा से जुड़े एक मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। इस हिंसा में हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की जान चली गई थी। अब जांच में यह बात सामने आई है कि जिस दावे के आधार पर भीड़ ने हमला किया था, उसके कोई सबूत नहीं मिले हैं।

सोशल मीडिया पर यह आरोप लगाया गया था कि दीपू चंद्र दास ने फेसबुक पर ऐसी टिप्पणी की थी, जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हुईं। लेकिन जांच एजेंसियों का कहना है कि अब तक ऐसी किसी भी पोस्ट या टिप्पणी के प्रमाण नहीं मिले हैं।

बांग्लादेश की रैपिड एक्शन बटालियन (RAB) के कंपनी कमांडर मोहम्मद शम्सुज्जमान ने बताया कि जांच में यह साबित करने वाला कोई साक्ष्य नहीं मिला है कि दीपू दास ने फेसबुक पर कोई आपत्तिजनक या धार्मिक भावनाएं भड़काने वाला कंटेंट डाला था।

इस मामले में अब तक 12 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। सुरक्षा एजेंसियां घटना से जुड़े सभी पहलुओं की जांच कर रही हैं और यह भी पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि अफवाह किसने और कैसे फैलाई, जिसके बाद हालात हिंसक हो गए।

कपड़ा फैक्ट्री में काम करते थे दीपू

दीपू मेमनसिंह जिले के भालुका में एक टैक्सटाइल कंपनी में काम करते थे। सूत्रों के अनुसार, फैक्ट्री में अफवाह फैली कि दीपू ने ईशनिंदा की है। फैक्ट्री के बाहर भी यह खबर पहुंच गई। रात करीब 9 बजे तक फैक्ट्री के बाहर भीड़ इकट्ठा हो गई।

भीड़ अंदर घुसी और दीपू को खींचकर ले गई। लात, घूंसों और डंडों से उसे पीटना शुरू कर दिया। उसके कपड़े फाड़ दिए गए। इसी दौरान दीपू की मौत हो गई, और उसके गले में रस्सी का फंदा डालकर उसकी लाश सड़क किनारे पेड़ से लटका दी गई। फिर उसमें आग लगा दी गई। एक वीडियो में दिख रहा है कि भीड़ ने दीपू चंद्र की डेडबॉडी में आग लगा दी। आसपास मौजूद लोग मोबाइल से वीडियो बनाते रहे।

स्टूडेंट लीडर उस्मान हादी की हत्या के बाद हिंसा भड़की

दीपू चंद्र की हत्या जिस समय हुई, उसी दौरान बांग्लादेश में हिंसा भड़की हुई थी। इंकिलाब मंच के लीडर शरीफ उस्मान बिन हादी की मौत के बाद से राजधानी ढाका समेत चार शहरों में आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं हुई हैं।

उस्मान हादी अगस्त 2024 में शेख हसीना सरकार के विरोध में हुए छात्र आंदोलन के लीडर थे। उन्हें 12 दिसंबर को चुनाव प्रचार के दौरान गोली मार दी गई थी। यूनुस सरकार ने उन्हें इलाज के लिए सिंगापुर भेजा था, लेकिन 18 दिसंबर को हादी की मौत हो गई।

इससे भड़की भीड़ ने बांग्लादेश के दो बड़े अखबारों के दफ्तर में आग लगा दी। आरोप है कि हादी के समर्थक इलियास हुसैन ने फेसबुक पोस्ट के जरिए लोगों से राजबाग एरिया में इकट्ठा होने के लिए कहा था।

उस्मान हादी अपनी तकरीरों में इन अखबारों की आलोचना करते थे। उन्हें हिंदुओं का पक्षधर बताया जाता था और इन अखबारों के सेक्युलर होने पर आलोचना करते थे।