प्रधानमंत्री मोदी ने 'मन की बात' में मातृ भाषा और पर्यावरण संरक्षण पर दिया जोर

नई दिल्ली, 29 सितंबर (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम के 114वें एपिसोड के दौरान देशवासियों को संबोधित किया और इस अवसर पर कई प्रेरणादायक उदाहरण साझा किए। उन्होंने कहा कि मातृ भाषा सीखने में सबसे आसान होती है और भारत में लगभग बीस हजार भाषाएं और बोलियां हैं। उन्होंने संथाली भाषा के संरक्षण के लिए चलाए जा रहे प्रयासों की सराहना की, जिसमें ओडिशा के मयूरभंज के रामजीत टुडू का उल्लेख किया।
 | 
प्रधानमंत्री मोदी ने 'मन की बात' में मातृ भाषा और पर्यावरण संरक्षण पर दिया जोर

नई दिल्ली, 29 सितंबर (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम के 114वें एपिसोड के दौरान देशवासियों को संबोधित किया और इस अवसर पर कई प्रेरणादायक उदाहरण साझा किए। उन्होंने कहा कि मातृ भाषा सीखने में सबसे आसान होती है और भारत में लगभग बीस हजार भाषाएं और बोलियां हैं। उन्होंने संथाली भाषा के संरक्षण के लिए चलाए जा रहे प्रयासों की सराहना की, जिसमें ओडिशा के मयूरभंज के रामजीत टुडू का उल्लेख किया।

पीएम मोदी ने कहा कि अगर ये पूछा जाए कि कोई बच्चा कौन सी भाषा सबसे आसानी से और जल्दी सीखता है - तो आपका जवाब होगा 'मातृभाषा'। हमारे देश में लगभग बीस हजार भाषाएं और बोलियां हैं और ये सब की सब किसी न किसी की तो मातृभाषा ही हैं। कुछ भाषाएं ऐसी हैं जिनका उपयोग करने वालों की संख्या बहुत कम है, लेकिन आपको यह जानकर खुशी होगी, कि उन भाषाओं को संरक्षित करने के लिए आज अनोखे प्रयास हो रहे हैं। ऐसी ही एक भाषा है हमारी 'संथाली' भाषा। 'संथाली' को डिजिटल इनोवेशन की मदद से नई पहचान देने का अभियान शुरू किया गया है।

उन्होंने कहा कि 'संथाली', हमारे देश के कई राज्यों में रह रहे संथाल जनजातीय समुदाय के लोग बोलते हैं। भारत के अलावा बांग्लादेश, नेपाल और भूटान में भी संथाली बोलने वाले आदिवासी समुदाय मौजूद हैं। संथाली भाषा की ऑनलाइन पहचान तैयार करने के लिए ओडिशा के मयूरभंज में रहने वाले रामजीत टुडु एक अभियान चला रहे हैं।

उन्होंने कहा कि रामजीत ने एक ऐसा डिजिटल प्लेटफॉर्म तैयार किया है, जहां संथाली भाषा से जुड़े साहित्य को पढ़ा जा सकता है और संथाली भाषा में लिखा जा सकता है। दरअसल कुछ साल पहले जब रामजीत जी ने मोबाइल फोन का इस्तेमाल शुरू किया तो वह इस बात से दुखी हुए कि वह अपनी मातृभाषा में संदेश नहीं दे सकते। इसके बाद वह ‘संथाली भाषा’ की लिपि ‘ओल चिकी’ को टाइप करने की संभावनाएं तलाश करने लगे। अपने कुछ साथियों की मदद से उन्होंने ‘ओल चिकी’ में टाईप करने की तकनीक विकसित कर ली। आज उनके प्रयासों से ‘संथाली’ भाषा में लिखे लेख लाखों लोगों तक पहुंच रहें हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने 'एक पेड़ मां के नाम' अभियान का भी जिक्र किया, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए चलाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस अभियान के तहत विभिन्न राज्यों में करोड़ों पेड़ लगाए गए हैं। उत्तर प्रदेश में 26 करोड़, गुजरात में 15 करोड़ और राजस्थान में केवल अगस्त महीने में 6 करोड़ से अधिक पौधे लगाए गए हैं। देश के हजारों स्कूल भी इस अभियान में जोर-शोर से हिस्सा ले रहे हैं।

उन्होंने तेलंगाना के एक शख्स राजशेखर का उदाहरण दिया, जिन्होंने चार साल से रोजाना एक पेड़ लगाने का संकल्प लिया है। पीएम मोदी ने कहा कि पेड़ लगाने के लिए उनकी प्रतिबद्धता हम सब को हैरान कर देती है। करीब चार साल पहले उन्होंने पेड़ लगाने की मुहिम शुरू की। उन्होंने तय किया कि हर रोज एक पेड़ जरूर लगाएगें। उन्होंने इस मुहिम का कठोर व्रत की तरह पालन किया। वह 1500 से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इस साल एक हादसे का शिकार होने के बाद भी वे अपने संकल्प से डिगे नहीं। मैं ऐसे सभी प्रयासों की हृदय से सराहना करता हूं। मेरा आपसे भी आग्रह है कि ‘एक पेड़ मां के नाम’ इस पवित्र अभियान से आप जरूर जुड़ें।

इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी ने तमिलनाडु की सुबाश्री का भी उल्लेख किया, जिन्होंने अपने प्रयासों से औषधीय जड़ी-बूटियों का एक अद्भुत बगीचा तैयार किया है। सुबाश्री ने पारंपरिक औषधियों के प्रति अपने लगाव को आगे बढ़ाते हुए 500 से ज्यादा दुर्लभ औषधीय पौधों का बगीचा तैयार किया है। कोविड के दौरान उन्होंने इन पौधों की मदद से लोगों की इम्युनिटी बढ़ाने में सहायता की।

--आईएएनएस

पीएसके/एएस