डॉ. मोहन भागवत का बयान: मतांतरण और विभाजन से बचने की आवश्यकता
राष्ट्र के लिए खतरा हैं मतांतरण और विभाजन

भारत में तीन शताब्दियों से चल रहे मतांतरण के प्रयासों के बावजूद, हम आज भी हिंदुस्तान हैं। हमारी संस्कृति और धर्म आज भी जीवित हैं, और इसे बनाए रखना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। मतांतरण और विभाजन राष्ट्र के लिए खतरा हैं। राजनीति समाज को संप्रदायों के आधार पर बांटती है, लेकिन हमें एकता बनाए रखनी चाहिए। हमारी सनातन संस्कृति की ताकत एकता और सद्भाव में निहित है।
डॉ. मोहन भागवत ने संघ के दरवाजे सभी के लिए खुले होने की बात कही
उन्होंने कहा, “संघ में कोई ब्राह्मण, दलित, क्रिश्चियन या मुस्लिम नहीं है - संघ में केवल हिंदू हैं। सभी भारत माता के संतान हैं। जब आप शाखा में आते हैं, तो आप भारत माता के पुत्र बन जाते हैं। संघ के दरवाजे हमेशा सभी के लिए खुले हैं। हम यहां आने वालों की जातिगत आधार पर गिनती नहीं करते।” यह बयान उन्होंने बेंगलुरु के पीईएस विश्वविद्यालय में दिए गए नए क्षितिज संवाद 02 में दिया।
संघ का तिरंगे के प्रति सम्मान
भगवा ध्वज और तिरंगे ध्वज के बारे में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में डॉ. भागवत ने कहा, “संघ हमेशा तिरंगे का सम्मान करता है। संघ सदैव तिरंगा ध्वज के साथ खड़ा रहा है और उसकी रक्षा की है। इसलिए भगवा बनाम तिरंगा का कोई सवाल नहीं है।”
बौद्धिक योद्धाओं की आवश्यकता
डॉ. भागवत ने कहा, “सांस्कृतिक मार्क्सवाद का प्रतिकार करने के लिए हमें बौद्धिक योद्धाओं की तैयारी रखनी होगी। हमें अपनी पीढ़ी को यह बताना है कि हम क्या हैं और उन्हें यह भी समझाना है कि वे क्या हैं।”
भारत में कोई भी अहिंदू नहीं
उन्होंने कहा, “हर राष्ट्र की एक मूल पहचान और संस्कृति होती है। संघ की संगठित शक्ति केवल सेवा करना चाहती है। हम भारत माता की महिमा के लिए समाज को संगठित करना चाहते हैं। हमारे देश में लोग अब इस पर विश्वास करते हैं। जब यह सवाल उठता है कि संघ हिंदू समाज पर ही क्यों ध्यान केंद्रित करता है, तो इसका उत्तर यह है कि हिंदू ही भारत के लिए जिम्मेदार हैं।”
संघ की कानूनी मान्यता
संघ के पंजीकरण और कानूनी वैधता से जुड़े प्रश्न पर डॉ. भागवत ने कहा, “संघ की स्थापना 1925 में हुई थी। क्या हमें ब्रिटिश सरकार के साथ पंजीकरण कराना चाहिए था? आज़ादी के बाद भी सरकार ने इसे अनिवार्य नहीं किया। संघ को कानूनी मान्यता प्राप्त है।”
हिंदू समाज को संगठित करना है लक्ष्य
डॉ. मोहन भागवत ने कहा, “हम पूरे हिंदू समाज को एकजुट करना और उसे गुणवान बनाना चाहते हैं, ताकि वह एक समृद्ध और मजबूत भारत का निर्माण कर सके।”
संघ के लिए रास्ता आसान नहीं रहा
उन्होंने कहा, “संघ के लिए रास्ता कभी आसान नहीं रहा। हमें कई वर्षों तक कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। लेकिन स्वयंसेवक अपना सब कुछ संघ को देते हैं और बदले में कुछ नहीं चाहते।”
थोरियम पर अनुसंधान की आवश्यकता
डॉ. भागवत ने कहा कि भारत को परमाणु ईंधन के संदर्भ में थोरियम अनुसंधान को उच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि संघ की सोच स्वदेशी दर्शन के अनुरूप है और इसे मजबूत करने के लिए निरंतर प्रयास जारी है।
