जेईई-नीट परीक्षा की समीक्षा: छात्रों को मिलेगी नई सुविधाएं

केंद्र सरकार जेईई और नीट जैसी प्रवेश परीक्षाओं के कठिनाई स्तर की समीक्षा करने की योजना बना रही है। यह कदम छात्रों को कोचिंग पर निर्भरता कम करने और स्कूल में बेहतर तैयारी के अवसर प्रदान करने के लिए उठाया जा रहा है। एक विशेषज्ञ पैनल द्वारा की जाने वाली इस समीक्षा से छात्रों को कई लाभ मिल सकते हैं, जैसे कि पाठ्यक्रम का समायोजन और स्कूल में विशेष तैयारी केंद्रों की स्थापना। जानें इस पैनल के गठन का कारण और इसके सदस्यों के बारे में।
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परीक्षा कठिनाई स्तर की समीक्षा

केंद्र सरकार जेईई और नीट जैसी प्रवेश परीक्षाओं के कठिनाई स्तर की समीक्षा करने की योजना बना रही है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ये परीक्षाएं कक्षा 12वीं के पाठ्यक्रम के स्तर के अनुरूप हों, ताकि छात्रों को कोचिंग पर निर्भर नहीं रहना पड़े। यह समीक्षा एक विशेषज्ञ पैनल द्वारा की जाएगी, जो कोचिंग से संबंधित मुद्दों पर फीडबैक प्रदान करेगा।


पैनल का गठन

शिक्षा मंत्रालय ने जून में एक नौ सदस्यीय पैनल का गठन किया था, जिसका उद्देश्य कोचिंग और डमी स्कूलों की प्रभावशीलता की जांच करना है। इस पैनल की अध्यक्षता उच्च शिक्षा सचिव विनीत जोशी कर रहे हैं, और यह छात्रों की कोचिंग पर निर्भरता को कम करने के उपाय सुझाएगा।


छात्रों को मिलने वाले लाभ

यदि परीक्षाओं के कठिनाई स्तर की समीक्षा की जाती है, तो पाठ्यक्रम को कक्षा 12वीं के स्तर के अनुसार समायोजित किया जाएगा। इससे छात्रों को कोचिंग की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और वे स्कूल में पढ़ाई करके आसानी से परीक्षा पास कर सकेंगे। इसके अलावा, स्कूलों में नीट और जेईई की तैयारी के लिए विशेष केंद्र स्थापित किए जाएंगे, जिससे छात्रों को स्कूल में ही बेहतर सुविधाएं मिलेंगी।


पैनल की जांच का दायरा

समिति वर्तमान शिक्षा प्रणाली में उन कमियों की जांच कर रही है, जो छात्रों की कोचिंग पर निर्भरता को बढ़ावा देती हैं। इसमें आलोचनात्मक सोच, तार्किक तर्क, और विश्लेषणात्मक कौशल पर ध्यान देने की कमी शामिल है।


पैनल के सदस्य

इस पैनल में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष, स्कूली और उच्च शिक्षा विभागों के संयुक्त सचिव, आईआईटी मद्रास, एनआईटी त्रिची, आईआईटी कानपुर, और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के प्रतिनिधि शामिल हैं।


पैनल का गठन क्यों?

कोचिंग केंद्रों से संबंधित कई विवादों और छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं के कारण सरकार ने इस पैनल का गठन किया है। इसके अलावा, आग लगने की घटनाओं और शिक्षण पद्धतियों में कमी की शिकायतों के चलते यह कदम उठाया गया है।