जबलपुर: गुलामी के प्रतीक और अंग्रेजी नामों का शहर

जबलपुर, जिसे संस्कारधानी के नाम से जाना जाता है, आज भी गुलामी के प्रतीकों से भरा हुआ है। इस शहर के कई क्षेत्र जैसे राइट टाउन और जॉर्ज टाउन, अंग्रेजों के नाम पर आधारित हैं, जो इसकी मानसिक गुलामी को दर्शाते हैं। जानें कैसे स्थानीय नेताओं के प्रयासों के बावजूद, ये नाम आज भी कायम हैं और शहर की पहचान को प्रभावित कर रहे हैं।
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जबलपुर की अंग्रेजी पहचान

जबलपुर: गुलामी के प्रतीक और अंग्रेजी नामों का शहर


हालांकि जबलपुर को संस्कारधानी कहा जाता है, लेकिन यह शहर अब भी गुलामी के निशानों से मुक्त नहीं हो पाया है। राइट टाउन, जॉर्ज टाउन, नेपियर टाउन, और लार्ड गंज जैसे क्षेत्र यह दर्शाते हैं कि हम आज भी अंग्रेजों के नामों को बदलने में असमर्थ हैं।


आजादी का अमृत महोत्सव मनाने वाला यह शहर, वास्तव में गुलामी की कहानी का जीवंत उदाहरण है। जबलपुर की गलियों और बाजारों में आज भी इंग्लिश सिटी का अहसास होता है।


लगभग डेढ़ सौ साल पहले जब अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में कदम रखा, तो उन्होंने कई क्रूरता की कहानियाँ लिखीं। यहां के धनाढ्य वर्ग ने अंग्रेजों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की और उन्हें अपना भाग्यविधाता मान लिया।


राजा गोकुलदास ने जबलपुर में पॉटरी का व्यवसाय किया, लेकिन अंग्रेजों ने आर्थर राइट को मैनेजर बनाकर उस पर नियंत्रण स्थापित किया। इसी के नाम पर राइट टाउन की स्थापना हुई। 1833 में गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक के सम्मान में लॉर्ड गंज का निर्माण किया गया, जो आज भी गुलामी का प्रतीक है।


सर नेपियर को जबलपुर का कमिश्नर बनाया गया, और उनके कैंप के आसपास का क्षेत्र नेपियर टाउन कहलाने लगा। यह क्षेत्र अब भी गुलामी की कहानी बयां करता है।


जब अंग्रेजों ने जबलपुर में अपनी कॉलोनी बनाई, तो उस क्षेत्र को गोरा बाजार कहा गया, जो आज भी विद्यमान है। यह गुलामी की मानसिकता का प्रतीक है।


अंग्रेज अधिकारियों के नाम पर कई स्थानों के नाम रखे गए हैं, जैसे मिलौनी गंज और रसल चौक, जो यह दर्शाते हैं कि हम अब भी मानसिक गुलामी के शिकार हैं।


स्थानीय नेताओं ने इन नामों को बदलने का प्रयास किया, लेकिन यह केवल कागजों तक सीमित रह गया। जबलपुर के इन अंग्रेजी नामों को बनाए रखकर हम अब भी गुलामी की मानसिकता से बाहर नहीं आ पाए हैं।