ग्वालियर उपभोक्ता फोरम का महत्वपूर्ण फैसला: डॉक्टर को एक लाख का मुआवजा

ग्वालियर जिला उपभोक्ता फोरम ने एक डॉक्टर को लापरवाही के मामले में दोषी ठहराते हुए एक लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह मामला एक मरीज की आंख की रोशनी कम होने से जुड़ा है, जिसमें डॉक्टर की लापरवाही से लेंस के टुकड़े आंख के अंदर रह गए थे। आयोग ने डॉक्टर की ओर से दिए गए तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि मरीज को ऑपरेशन से पहले जोखिमों की जानकारी नहीं दी गई थी। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और फोरम के निर्णय के पीछे की कहानी।
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ग्वालियर उपभोक्ता फोरम का निर्णय

ग्वालियर उपभोक्ता फोरम का महत्वपूर्ण फैसला: डॉक्टर को एक लाख का मुआवजा


ग्वालियर उपभोक्ता फोरम ने सुनाया फैसला


ग्वालियर जिला उपभोक्ता फोरम ने एक डॉक्टर की लापरवाही के मामले में महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। एक मरीज की आंख की रोशनी में कमी आने पर फोरम ने डॉक्टर को दोषी ठहराते हुए एक लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। दरअसल, डॉक्टर की लापरवाही के कारण लेंस के टुकड़े मरीज की आंख के अंदर रह गए थे, जिसके चलते मरीज ने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। आयोग ने कहा कि इलाज के दौरान आवश्यक सतर्कता न बरतने और तथ्यों को छिपाने के कारण मरीज को शारीरिक और मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ा।


मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद नहीं आई रोशनी


2021 में कराया था ऑपरेशन: शहर के थाटीपुर निवासी 77 वर्षीय चतुर्भुज गुप्ता को मोतियाबिंद की समस्या थी। उन्होंने मार्च 2021 में कन्हैयालाल विनोद कुमार मेमोरियल आई हॉस्पिटल में अपनी आंख की जांच कराई थी। जेएएच के पूर्व चिकित्सक डॉ. राकेश गुप्ता ने उन्हें ऑपरेशन कराने की सलाह दी। 9 मार्च 2021 को ऑपरेशन किया गया, लेकिन सर्जरी के बाद भी मरीज को साफ दिखाई नहीं दे रहा था।


आंख के अंदर रह गए लेंस के टुकड़े


मरीज की आगे की जांच में पता चला कि ऑपरेशन के दौरान लेंस इम्प्लांट करते समय लापरवाही बरती गई थी, जिससे पोस्टेरियर कैप्सूल रिप्चर हो गया। इसके बावजूद डॉक्टर ने यह तथ्य मरीज से छिपा लिया और उचित उपचार नहीं दिया। 15 दिन बाद भी जब सुधार नहीं हुआ, तो दूसरी जांच में पाया गया कि लेंस के कुछ टुकड़े आंख के अंदर ही रह गए थे।


उपभोक्ता फोरम ने डॉक्टर को दोषी ठहराया


उपभोक्ता फोरम ने डॉक्टर की ओर से दिए गए तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि डॉक्टर यह साबित नहीं कर सके कि मरीज को ऑपरेशन से पहले जोखिमों की जानकारी दी गई थी या उसकी लिखित सहमति ली गई थी। मरीज को समय पर अन्य विशेषज्ञ के पास रेफर न करना और तथ्य छिपाना स्पष्ट लापरवाही है। इसलिए आयोग ने डॉक्टर को राहत न देते हुए दोषी करार दिया। उपभोक्ता फोरम ने कहा कि डॉक्टर को मरीज को एक लाख रुपये क्षतिपूर्ति 45 दिनों के भीतर देना होगा। राशि में देरी होने पर 6% वार्षिक ब्याज देना होगा। मरीज को मानसिक पीड़ा के लिए 5,000 और वाद व्यय के लिए 1,000 रुपये भी अदा करने होंगे।