केंद्र सरकार ने IAS, IPS और IFS अधिकारियों के तबादलों की प्रक्रिया की समीक्षा शुरू की
तबादलों की प्रक्रिया पर केंद्र का ध्यान

जब भी सरकारी अधिकारियों के तबादलों की चर्चा होती है, तो आम जनता के मन में यह सवाल उठता है कि क्या यह सब नियमों के अनुसार हो रहा है? इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए, केंद्र सरकार ने सभी प्रक्रियाओं की समीक्षा शुरू कर दी है। केंद्रीय कार्मिक विभाग (DoPT) ने IAS, IPS और IFS अधिकारियों के तबादलों पर अपनी निगरानी बढ़ाते हुए सभी राज्यों से सिविल सेवा बोर्ड के तहत किए गए तबादलों की वार्षिक रिपोर्ट मांगी है। यह रिपोर्ट 1 जनवरी तक केंद्र को प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया गया है।
सरकार का निर्देश
DoPT ने स्पष्ट किया है कि अब केवल वही तबादले मान्य होंगे जिनकी सिफारिश सिविल सेवा बोर्ड द्वारा की गई हो। सुप्रीम कोर्ट के 2013 के आदेश और 1954 के कैडर नियमों का पालन अनिवार्य है।
उत्तराखंड में स्थिति
उत्तराखंड प्रशासन की कार्यशैली अक्सर चर्चा में रहती है, लेकिन इस बार यह नियमों के दायरे में आ गई है। राज्य में IAS अधिकारियों के तबादलों के लिए कोई आधिकारिक सिविल सेवा बोर्ड नहीं है, जिसका अर्थ है कि तबादले सीधे उच्च प्रशासनिक स्तर पर होते रहे हैं, जो नियमों के अनुसार उचित नहीं है।
IPS और IFS के लिए अलग नियम
IPS अधिकारियों के तबादले पुलिस मुख्यालय की समिति द्वारा निर्धारित होते हैं, जबकि IFS अधिकारियों के लिए मुख्य सचिव का बोर्ड मौजूद है। यह भिन्नता यह दर्शाती है कि देशभर में नियमों में एकरूपता नहीं है।
नियमों की जानकारी
केंद्र का पत्र 1954 के नियमों के तहत Rule 7(1) और 7(3) का उल्लेख करता है, जिसके अनुसार किसी भी अधिकारी के तबादले का निर्णय सिविल सेवा बोर्ड की सिफारिश के बाद ही होना चाहिए। कुछ अपवादों को छोड़कर, किसी पद पर अधिकारी का न्यूनतम कार्यकाल 2 वर्ष होना आवश्यक है। हालांकि, उत्तराखंड जैसे राज्यों में बार-बार तबादलों की परंपरा जारी है, जो नियमों की भावना के खिलाफ है। केंद्र ने सभी राज्यों को अपने सिविल सेवा बोर्ड का पूरा विवरण भेजने का निर्देश दिया है, जिसमें उसकी संरचना, संचालन और गतिविधियों को साझा करना शामिल है। इसे उच्च प्राथमिकता के रूप में देखा जाना चाहिए।
