कलकत्ता हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: विदेशी अदालत में तलाक की सुनवाई संभव

कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि पति या पत्नी में से कोई एक विदेश में निवास करता है, तो भारत में संपन्न विवाह के बावजूद विदेशी अदालत में तलाक का मामला सुना जा सकता है। यह फैसला उस मामले पर आधारित है, जिसमें दंपती ने अलग-अलग देशों में तलाक की याचिका दायर की थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि भारतीय कानून में ऐसी प्रक्रिया पर कोई रोक नहीं है। जानें इस फैसले के पीछे की पूरी कहानी और इसके कानूनी पहलुओं के बारे में।
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कलकत्ता हाई कोर्ट का निर्णय

बेंगलुरु
कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण कानूनी व्याख्या प्रस्तुत की है, जिसमें कहा गया है कि यदि पति या पत्नी में से कोई एक व्यक्ति विदेश में निवास करता है, तो भारत में संपन्न विवाह के बावजूद विदेशी अदालत में तलाक का मामला सुना जा सकता है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय कानून में ऐसी प्रक्रिया पर कोई पूर्ण रोक नहीं है। यह निर्णय न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति सुप्रतिम भट्टाचार्य की खंडपीठ ने उस मामले में दिया, जिसमें तलाक के अधिकार क्षेत्र को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था।

मामले का विवरण
इस मामले में, दंपती का विवाह 15 दिसंबर 2018 को कोलकाता में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था। पति ने 4 सितंबर 2024 को कोलकाता की अलीपुर अदालत में तलाक की याचिका दायर की। इसके बाद, पत्नी ने 10 अक्टूबर 2024 को ब्रिटेन की अदालत में तलाक और भरण-पोषण का मामला दायर किया। पत्नी का कहना था कि वह 2015 से ब्रिटेन में पहले छात्र वीजा और बाद में वर्क वीजा पर रह रही है, और उनका अंतिम साझा निवास भी ब्रिटेन में था।


निचली अदालत का निर्णय और हाई कोर्ट की दखल
ब्रिटेन की अदालत ने मई 2025 में पति को भरण-पोषण देने का आदेश दिया था, लेकिन अलीपुर की निचली अदालत ने इस आदेश पर रोक लगा दी। निचली अदालत का मानना था कि चूंकि पति ने पहले भारत में तलाक की अर्जी दी थी और पत्नी के पास ब्रिटेन की स्थायी नागरिकता नहीं है, इसलिए विदेशी अदालत को अधिकार क्षेत्र प्राप्त नहीं है। हालांकि, कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस निर्णय को पलट दिया।


हाई कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां
हाई कोर्ट ने कहा कि पति ने स्वयं ब्रिटेन की अदालत में उपस्थित होकर गवाही और साक्ष्य प्रस्तुत किए थे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह वहां की न्यायिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल था। ऐसे में वह बाद में उस अदालत के अधिकार क्षेत्र पर सवाल नहीं उठा सकता। कोर्ट ने पति के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि ब्रिटेन में तलाक का आधार, विवाह का पूरी तरह टूट जाना, भारतीय कानून के अंतर्गत मान्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि जब वैवाहिक संबंध इस हद तक बिगड़ जाएं कि उनके सुधरने की कोई संभावना न बचे, तो इसे क्रूरता के समान माना जा सकता है और यह तलाक का वैध आधार हो सकता है।


विदेशी अदालतों पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यद्यपि हिंदू विवाह अधिनियम में जिला अदालत से तात्पर्य सामान्यतः भारतीय अदालतों से है, लेकिन बदलते वैश्विक परिप्रेक्ष्य में विदेशी अदालतों की सुनवाई को पूरी तरह अमान्य नहीं ठहराया जा सकता।