इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भूमि विवाद में सख्त आदेश जारी किया
कोर्ट का कड़ा रुख
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक भूमि विवाद मामले में सख्त कार्रवाई की है, जिसमें जमीन के मालिक का नाम हटाने और निर्माण को ध्वस्त करने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने बिना सुनवाई के नाम हटाने और ढांचे को गिराने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए भूमि प्राधिकरण को फटकार लगाई। इसके साथ ही, कोर्ट ने एसडीएम द्वारा जारी आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को जमीन का कब्जा देने का निर्देश दिया। इसके अलावा, सरकार पर 20 लाख रुपये का हर्जाना भी लगाया गया है।
आदेश का विवरण
कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि याचिकाकर्ता को मुआवजे की राशि दो महीने के भीतर दी जानी चाहिए। इसके अलावा, राजस्व अधिकारियों की भूमिका की जांच करने का भी निर्देश दिया गया है, जो अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी द्वारा की जाएगी। यह आदेश जस्टिस आलोक माथुर की एकल बेंच ने 19 दिसंबर को सावित्री सोनकर द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान पारित किया।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि रायबरेली जिले के देवनंदनपुर गांव में खाता संख्या 431 बी की जमीन का स्वामित्व उसके नाम था और यह राजस्व रिकॉर्ड में भी दर्ज था। इसके बावजूद, संबंधित उपजिलाधिकारी (एसडीएम) ने बिना सुनवाई के 10 फरवरी को राजस्व संहिता की धारा 38 के तहत कार्रवाई की और रिकॉर्ड से उसका नाम हटा दिया, साथ ही जमीन को ग्राम सभा की संपत्ति घोषित कर दिया।
अवैध रिकॉर्ड परिवर्तन
इस आदेश के आधार पर 24 मार्च को याचिकाकर्ता का निर्माण ढहा दिया गया और जमीन वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विभाग को सौंप दी गई। कोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि रिकॉर्ड में बदलाव अवैध और मनमाने तरीके से किया गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को कोई नोटिस नहीं दिया गया और न ही उसका पक्ष सुना गया। इसके बाद, कोर्ट ने एसडीएम द्वारा पारित आदेश को रद्द करते हुए राजस्व अधिकारियों की भूमिका की जांच का आदेश दिया।
