आधुनिक आतंकवाद: शिक्षित युवाओं की भूमिका और उसके प्रभाव

आधुनिक आतंकवाद का स्वरूप बदल चुका है, जिसमें शिक्षित युवा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यह लेख बताता है कि कैसे उच्च शिक्षा प्राप्त लोग आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं और समाज पर इसके गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं। जानें कि कट्टरपंथी संगठन कैसे तकनीकी साधनों का उपयोग कर युवाओं को अपने जाल में फंसा रहे हैं। क्या यह समझना कठिन है कि शिक्षा आतंकवाद से बचाव नहीं कर रही है? इस विषय पर एक गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है।
 | 

आधुनिक आतंकवाद का नया चेहरा

आधुनिक आतंकवाद: शिक्षित युवाओं की भूमिका और उसके प्रभाव


मानवता सदियों से आतंक के साए में जी रही है। पहले इसे अज्ञानता, अशिक्षा और गरीबी का परिणाम माना जाता था, लेकिन अब इक्कीसवीं सदी में आतंकवाद का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। आज यह उच्च शिक्षा प्राप्त और कट्टर जिहादी विचारधारा से प्रभावित व्यक्तियों का उत्पात बन गया है। आधुनिक आतंकवाद की एक चिंताजनक प्रवृत्ति यह है कि इसमें शिक्षित और तकनीकी रूप से सक्षम युवा शामिल हो रहे हैं। ये आतंकवादी विश्व की शांति को किसी भी कीमत पर नष्ट करने के लिए तैयार हैं। इंजीनियर, डॉक्टर, आईटी विशेषज्ञ और शोधकर्ता अपने ज्ञान का उपयोग करके साइबर हमले, डिजिटल फंडिंग और डिजिटल ब्रेनवॉशिंग जैसी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।


यदि हम अतीत में जाएं, तो सितंबर 2001 में अमेरिका पर हुए ट्विन टावर हमले का मास्टरमाइंड मोहम्मद अट्टा जर्मनी से अर्थशास्त्र की पढ़ाई करके आया था। उसके कई सहयोगी, जैसे हानी हंजूर और ज़ियाद जर्राह, विमानन प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके थे और अल-कायदा से प्रशिक्षण लेकर योजना को अंजाम देने में जुटे थे। इसी तरह, 2005 के लंदन बम धमाके का मुख्य आरोपी मोहम्मद सिद्दीक़ ख़ान ब्रिटेन में शिक्षक था। 2016 के बांग्लादेश धमाकों में शामिल अधिकांश आतंकवादी प्राइवेट यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए थे। हाल ही में फरीदाबाद टेरर मॉड्यूल और दिल्ली कार ब्लास्ट का मास्टरमाइंड मुजम्मिल गनई एक डॉक्टर है, और उसके सभी सहयोगी भी उच्च शिक्षित हैं।


यह स्पष्ट है कि आतंकवाद और चरमपंथ केवल अशिक्षा और गरीबी का परिणाम नहीं हैं। शिक्षित लोगों को पहचानना और ट्रैक करना कठिन होता है, जिससे उन्हें सामान्य सामाजिक निगरानी से बचने का मौका मिलता है। कट्टरपंथी संगठन सोशल मीडिया, एन्क्रिप्टेड ऐप्स और ऑनलाइन सामग्री के माध्यम से पढ़े-लिखे युवाओं को ‘मिशन विशेष’ के आकर्षण में फंसाने में सफल हो जाते हैं। हाल ही में पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन ‘जैश-ए-मोहम्मद’ ने मसूद अजहर की बहन सादिया अजहर को ‘जमात-उल-मोमिनात’ का प्रमुख बनाया है, जिसका उद्देश्य महिलाओं को इस्लामी कर्तव्यों और जिहाद के प्रति जागरूक करना है। भारत में इस आतंकी महिला विंग का नेतृत्व डॉक्टर शाहीन सईद को सौंपा गया है।


क्या अब भी यह समझना मुश्किल है कि महिलाओं को डिजिटल माध्यमों से ब्रेनवॉश करके उन्हें स्लीपर सेल या फंडिंग एजेंट के रूप में उपयोग किया जा रहा है? यह दर्शाता है कि उच्च शिक्षा प्राप्त करना कट्टरपन से बचाव नहीं है; बल्कि यह आतंकवादियों के लिए एक सुविधाजनक मार्ग का निर्माण कर देता है। इस एलीट आतंकवाद का उद्देश्य समाज में भय फैलाना, उसे बांटना, कन्वर्जन और मतांतरण के लिए शांति को भंग करना है। आतंकवादी हमले न केवल आंतरिक अशांति का कारण बनते हैं, बल्कि देशों के बीच अविश्वास भी बढ़ाते हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय संबंध और आर्थिक सहयोग कमजोर होते हैं।


इक्कीसवीं सदी में, जब भारत वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है, वहीं सुशिक्षित आतंकवाद उसकी प्रगति में बाधा डाल रहा है। ट्विन टावर से लेकर दिल्ली धमाकों तक सभी घटनाओं का समान पैटर्न यह दर्शाता है कि आतंकवादी अब अज्ञानता से नहीं, बल्कि ज्ञान के गलत दिशा में मुड़ने से प्रेरित हो रहे हैं। भारत की आंतरिक गतिकी हमेशा समावेशी संस्कृति के निर्माण और उसके संरक्षण की रही है। ऐसे में एक विशेष वर्ग द्वारा आंतरिक शांति में बार-बार खलल डालने के प्रयासों का उचित उपाय करने का समय आ गया है।


(लेखक किशोर न्याय बोर्ड सदस्य तथा स्वतंत्र लेखक हैं)