रिटायरमेंट के बाद अवसाद: जानें कैसे करें प्रबंधन

रिटायरमेंट डिप्रेशन: एक गंभीर समस्या
रिटायरमेंट डिप्रेशन: जब लोग कार्यस्थल पर होते हैं, तब वे परिवार और कार्य संस्कृति का आनंद लेते हैं। लेकिन रिटायरमेंट के बाद अचानक ऑफिस के सभी सहकर्मियों से दूरी बन जाती है, जो एक बड़ा भावनात्मक झटका होता है। इस स्थिति में कई लोग अवसाद का शिकार हो जाते हैं। एक अध्ययन के अनुसार, भारत में रिटायरमेंट के बाद अवसाद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कार्य जीवन में सम्मान और सुख के बाद अचानक बदलाव से जीवन में कठिनाई आ जाती है। आर्थिक लाभ के बावजूद, यह एक भावनात्मक चुनौती बन जाती है। इसलिए यह जानना आवश्यक है कि रिटायरमेंट के बाद जीवन को कैसे खुशहाल बनाया जाए।
भावनात्मक झटका और उसके प्रभाव
अचानक भावनात्मक सदमा
एक रिपोर्ट के अनुसार, सर गंगाराम अस्पताल की सीनियर साइकियाट्रिस्ट डॉ. आरती आनंद बताती हैं कि रिटायरमेंट कई लोगों के लिए अकेलेपन और निरर्थकता की भावना लेकर आता है, जो मानसिक अवसाद का कारण बन सकता है। सक्रियता से निष्क्रियता में परिवर्तन से थकान, प्रेरणा की कमी और नकारात्मकता का अनुभव होता है। काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट डॉ. निशा जैन के अनुसार, यह स्थिति दिनचर्या की कमी, सामाजिक संपर्कों की कमी और पेशेवर पहचान के अचानक खोने के कारण होती है। वित्तीय अस्थिरता और स्वास्थ्य समस्याएं भी इस स्थिति को बढ़ा देती हैं। भारत में रिटायरमेंट डिप्रेशन अधिक होता है क्योंकि लोग अधिक भावनात्मक होते हैं।
रिटायरमेंट डिप्रेशन के लक्षण
रिटायरमेंट डिप्रेशन होने पर होता है ये
इस स्थिति में तनाव बढ़ता है, जिससे उच्च रक्तचाप और उच्च रक्त शर्करा की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। ये बीमारियां लंबे समय तक बनी रह सकती हैं और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती हैं। रिटायरमेंट डिप्रेशन के कारण याददाश्त में कमी और पारिवारिक रिश्तों में तनाव भी बढ़ सकता है। गंभीर मामलों में, लोग शराब या धूम्रपान की आदतों में वृद्धि कर सकते हैं।
रिटायरमेंट डिप्रेशन से निपटने के उपाय
रिटायरमेंट डिप्रेशन को कैसे रोका जाए
इस अवसाद को रोका और प्रबंधित किया जा सकता है। रिटायरमेंट से पहले एक सुविचारित योजना बनाना महत्वपूर्ण है, जिसमें भविष्य के लिए प्रोजेक्ट शामिल हों। अपने शौक पर ध्यान दें और परिवार के साथ समय बिताएं। बच्चों के साथ संबंध मजबूत करें और नई जगहों की यात्रा करें। आर्थिक निवेश पर ध्यान दें और नियमित व्यायाम करें। दोस्तों से संपर्क बनाए रखें और नए शौक या पाठ्यक्रम अपनाएं। स्वस्थ आदतें अपनाएं, संतुलित आहार लें और मानसिक गतिविधियों में भाग लें। छोटे लक्ष्यों को हासिल करने से आत्मसंतोष की भावना बढ़ेगी। हर दो महीने में छोटी यात्रा पर जाना न भूलें और परिवार के साथ खुलकर संवाद करें।