डायलिसिस के दौरान मानसिक तनाव: काउंसलिंग की आवश्यकता

डायलिसिस एक महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रक्रिया है, लेकिन इसके साथ मानसिक तनाव की समस्या भी जुड़ी होती है। मरीजों को बार-बार अस्पताल जाना और मशीन पर निर्भर रहना मानसिक थकान का कारण बन सकता है। इस स्थिति में काउंसलिंग की आवश्यकता होती है, जो मरीजों को सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करती है। जानें कि कैसे मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखा जा सकता है और डायलिसिस के दौरान काउंसलिंग क्यों आवश्यक है।
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डायलिसिस के दौरान मानसिक तनाव: काउंसलिंग की आवश्यकता

डायलिसिस की प्रक्रिया और मानसिक स्वास्थ्य

डायलिसिस के दौरान मानसिक तनाव: काउंसलिंग की आवश्यकता

डायलिसिस Image Credit source: Getty Images

डायलिसिस एक चिकित्सा प्रक्रिया है, जो तब की जाती है जब किडनी शरीर से अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को बाहर नहीं निकाल पाती। जब किडनी फेल होती है, तो रक्त में विषैले पदार्थ जमा हो जाते हैं, जिससे जीवन को खतरा होता है। इस स्थिति में, डायलिसिस मशीन का उपयोग करके रक्त को साफ किया जाता है। यह प्रक्रिया मुख्यतः दो प्रकार की होती है: हीमोडायलिसिस और पेरिटोनियल डायलिसिस। हीमोडायलिसिस में मशीन रक्त को छानती है, जबकि पेरिटोनियल डायलिसिस में पेट की झिल्ली का उपयोग किया जाता है। यह प्रक्रिया लंबे समय तक चलती है, जिससे मरीज की जान बचाई जा सके और शरीर में आवश्यक संतुलन बना रहे।

डायलिसिस के दौरान मानसिक तनाव एक सामान्य समस्या है। बार-बार अस्पताल जाना, मशीन पर निर्भर रहना और शारीरिक कमजोरी, मरीजों को मानसिक रूप से थका देती है। कई मरीजों को यह महसूस होता है कि उनकी ज़िंदगी अब दूसरों पर निर्भर हो गई है। यह भावना डिप्रेशन, चिंता और आत्म-निंदा को बढ़ा सकती है। डायलिसिस के दौरान शारीरिक ऊर्जा की कमी से मूड स्विंग, नींद की कमी और भूख न लगने जैसी समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। लगातार इलाज के खर्चे और दिनचर्या पर नियंत्रण खो देना भी तनाव को बढ़ाता है। इसलिए, डायलिसिस मरीजों के लिए मानसिक स्थिरता बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।


काउंसलिंग का महत्व

डायलिसिस मरीजों के लिए काउंसलिंग क्यों है जरूरी?

गाजियाबाद जिला MMG हॉस्पिटल के मनोरोग विभाग के डॉ. ए.के. विश्वकर्मा के अनुसार, डायलिसिस एक लंबी और भावनात्मक रूप से थकाने वाली प्रक्रिया है। इस दौरान मरीज के मनोबल को बनाए रखना आवश्यक है। काउंसलिंग मरीजों को यह समझने में मदद करती है कि यह स्थिति स्थायी नहीं है और जीवन को सामान्य बनाए रखने के कई तरीके हैं।

काउंसलर मरीजों को सकारात्मक सोच, तनाव प्रबंधन और आत्मविश्वास बढ़ाने की तकनीकें सिखाते हैं। इससे मरीज अपनी स्थिति को स्वीकार कर पाते हैं और उपचार में बेहतर सहयोग करते हैं। परिवार के सदस्यों को भी इस दौरान भावनात्मक समर्थन देने की विधियाँ सिखाई जाती हैं, ताकि मरीज अकेलापन महसूस न करें। नियमित काउंसलिंग से मरीजों की मानसिक स्थिरता, नींद और जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। इसलिए, डायलिसिस के साथ-साथ मानसिक देखभाल भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।


स्वास्थ्य संबंधी सुझाव

इन चीजों का रखें ध्यान

डॉक्टर की सलाह के अनुसार डायलिसिस शेड्यूल का पालन करें।

पानी और नमक की मात्रा को नियंत्रित रखें।

पर्याप्त नींद लें और संतुलित आहार का सेवन करें।

परिवार और दोस्तों से संवाद बनाए रखें।

अपनी भावनाओं को मन में न रखें, काउंसलर से साझा करें।

नियमित व्यायाम या ध्यान करें।