विश्व जूनोसिस दिवस : जानिए क्या हैं जूनोटिक रोग, कैसे करें बचाव

नई दिल्ली, 5 जुलाई (आईएएनएस)। जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 6 जुलाई को विश्व जूनोसिस दिवस मनाया जाता है। इन बीमारियों को जूनोटिक रोग कहा जाता है। इसमें रेबीज, टीबी, स्वाइन फ्लू, और डेंगू जैसे रोग शामिल हैं।
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विश्व जूनोसिस दिवस : जानिए क्या हैं जूनोटिक रोग, कैसे करें बचाव

नई दिल्ली, 5 जुलाई (आईएएनएस)। जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 6 जुलाई को विश्व जूनोसिस दिवस मनाया जाता है। इन बीमारियों को जूनोटिक रोग कहा जाता है। इसमें रेबीज, टीबी, स्वाइन फ्लू, और डेंगू जैसे रोग शामिल हैं।

विश्व जूनोसिस दिवस हमें यह समझने में मदद करता है कि मानव और पशु स्वास्थ्य आपस में जुड़े हैं, और इन रोगों से बचाव के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं। हर साल भारत में विश्व जूनोसिस दिवस के दिन (6 जूनोटिक रोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और रोकथाम के लिए विभिन्न गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। खास तौर पर देशभर में चिड़ियाघर में पर्यटकों और छोटे बच्चों के बीच इसकी जागरूकता फैलाई जाती है, ताकि वे दूसरे लोगों में जूनोटिक बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाएं। इसके अलावा सरकारी और गैर-सरकारी संगठन, जैसे पशु चिकित्सा विभाग, स्वास्थ्य मंत्रालय, और विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से, जूनोटिक रोगों जैसे रेबीज, लेप्टोस्पायरोसिस, और स्वाइन फ्लू के खतरों के बारे में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

शहरी और ग्रामीण इलाकों में सेमिनार, कार्यशालाएं, और रैलियां आयोजित की जाती हैं ताकि लोग स्वच्छता, पशु संपर्क से बचाव, और टीकाकरण के महत्व को समझें।

विश्व जूनोसिस दिवस मनाने के पीछे एक लंबा इतिहास है। इसकी शुरुआत 6 जुलाई 1885 को फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुई पाश्चर की उपलब्धि के सम्मान में हुई थी जिन्होंने रेबीज का पहला टीका विकसित किया था। यह टीका एक जूनोटिक रोग के खिलाफ महत्वपूर्ण कदम था।

जूनोटिक रोग में रेबीज भी शामिल है। भारत में रेबीज पर विशेष ध्यान दिया जाता है, क्योंकि यहां दुनिया के रेबीज मामलों का एक बड़ा हिस्सा दर्ज होता है। इस दिन मुफ्त टीकाकरण और जागरूकता शिविर लगाए जाते हैं। शहरों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में पशु स्वास्थ्य जांच शिविर आयोजित किए जाते हैं, जहां पशुओं को जूनोटिक रोगों से बचाने के लिए टीके और दवाएं दी जाती हैं।

इन कार्यक्रमों के पीछे एकमात्र मकसद यह है कि इन गतिविधियों के माध्यम से जूनोटिक रोगों के जोखिम को कम किया जाए, सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा मिले और मानव-पशु-पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखा जाए। भारत के लिए यह दिन काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां पशुधन और मानव आबादी का घनत्व अधिक है, जिससे जूनोटिक रोगों का खतरा बढ़ जाता है।

--आईएएनएस

डीकेएम/एकेजे