आईबीडी मरीजों में खून और आयरन की कमी के पीछे एक खास जेनेटिक बदलाव का खुलासा

न्यूयॉर्क, 8 जून (आईएएनएस)। बायोमेडिकल वैज्ञानिकों ने एक नई खोज की है जिसमें पाया गया है कि क्रोहन रोग से जुड़ा एक जेनेटिक बदलाव शरीर में आयरन की कमी और खून की कमी (एनीमिया) को और बढ़ा सकता है। यह समस्या उन लोगों में आम पाई जाती है जो इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी), यानी आंतों की सूजन से जुड़ी बीमारी से पीड़ित होते हैं।
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आईबीडी मरीजों में खून और आयरन की कमी के पीछे एक खास जेनेटिक बदलाव का खुलासा

न्यूयॉर्क, 8 जून (आईएएनएस)। बायोमेडिकल वैज्ञानिकों ने एक नई खोज की है जिसमें पाया गया है कि क्रोहन रोग से जुड़ा एक जेनेटिक बदलाव शरीर में आयरन की कमी और खून की कमी (एनीमिया) को और बढ़ा सकता है। यह समस्या उन लोगों में आम पाई जाती है जो इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी), यानी आंतों की सूजन से जुड़ी बीमारी से पीड़ित होते हैं।

यह अध्ययन अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया, रिवरसाइड स्कूल ऑफ मेडिसिन में किया गया। इसमें वैज्ञानिकों ने आईबीडी मरीजों के सीरम नमूनों की जांच की और पाया कि जिन लोगों के शरीर में पीटीपीएन2 (प्रोटीन टायरोसिन फॉस्फेट नॉन-रिसेप्टर टाइप 2) नामक जीन में एक खास प्रकार का बदलाव (म्यूटेशन) होता है, उनके खून में आयरन को नियंत्रित करने वाले प्रोटीन सही ढंग से काम नहीं करते।

यह जेनेटिक बदलाव आम लोगों में लगभग 14 से 16 प्रतिशत और आईबीडी मरीजों में 19 से 20 प्रतिशत लोगों में पाया जाता है। इस बदलाव के कारण जीन का सामान्य कामकाज रुक जाता है या बहुत कम हो जाता है।

आईबीडी केवल आंतों को ही नहीं बल्कि पूरे शरीर को प्रभावित कर सकता है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मॉलिक्यूलर साइंसेज में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया इन प्रभावों में सबसे अधिक प्रचलित है, जो क्रोनिक थकान और जीवन की गुणवत्ता में कमी का कारण बनता है, खासकर बीमारी के बढ़ने के दौरान।

यूसीआर में बायोमेडिकल साइंसेज के प्रोफेसर डेक्लेन मैककोल ने कहा, "यह खोज हमें यह समझने में मदद करती है कि कुछ मरीजों में जेनेटिक कारणों से शरीर में आयरन को अवशोषित करने और नियंत्रित करने की क्षमता क्यों कम हो जाती है। यही वजह है कि कुछ मरीजों को आयरन की गोलियां देने पर भी उनकी हालत नहीं सुधरती।"

जब शोधकर्ताओं ने चूहों में यह पीटीपीएन2 जीन हटाया, तो उनमें भी एनीमिया हो गया और वे भोजन से आयरन को सही तरीके से नहीं ले पाए। इसकी वजह यह पाई गई कि उनकी आंतों की कोशिकाओं में आयरन को अवशोषित करने वाला एक जरूरी प्रोटीन बहुत कम मात्रा में बन रहा था।

अध्ययन के पहले लेखक हिलमिन ली ने कहा, "शरीर में आयरन का एकमात्र जरिया भोजन है, इसलिए यह खोज बहुत मायने रखती है।"

इस शोध से यह बात भी सामने आई है कि जिन आईबीडी मरीजों के शरीर में यह जेनेटिक बदलाव होता है, वे आमतौर पर आयरन की दवा लेने के बावजूद फायदा नहीं उठा पाते।

यह अध्ययन आईबीडी जैसी बीमारियों को बेहतर समझने की दिशा में एक जरूरी कदम है, जिससे पता चलता है कि जेनेटिक कारणों से पोषण संबंधी समस्याएं और ज़्यादा गंभीर हो सकती हैं।

--आईएएनएस

एएस/