राजस्थान हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: 31 साल पुरानी सजा रद्द

राजस्थान हाईकोर्ट ने SC/ST एक्ट के तहत 31 साल पुरानी सजा को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि यदि जातिसूचक अपमान किसी बंद स्थान पर हुआ हो, तो इसे सार्वजनिक दृष्टि में नहीं माना जा सकता। यह निर्णय एक वाहन शोरूम संचालक के खिलाफ लगे आरोपों पर आधारित है। जानें इस महत्वपूर्ण फैसले के पीछे की पूरी कहानी और इसके कानूनी पहलुओं के बारे में।
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राजस्थान हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: 31 साल पुरानी सजा रद्द

राजस्थान हाईकोर्ट का निर्णय

राजस्थान हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: 31 साल पुरानी सजा रद्द

राजस्थान हाईकोर्ट.

राजस्थान हाईकोर्ट ने SC/ST एक्ट के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत 1994 में दी गई सजा को रद्द कर दिया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि जातिसूचक अपमान या गाली किसी बंद दुकान, शोरूम या चारदीवारी के भीतर हुई हो, जहां आम जनता की उपस्थिति या दृश्यता न हो, तो इसे कानून की दृष्टि में ‘सार्वजनिक दृष्टि’ में नहीं माना जा सकता।

यह निर्णय जस्टिस फरजंद अली की एकल पीठ द्वारा सुनाया गया। मामला एक वाहन शोरूम के संचालक से संबंधित था, जिस पर आरोप था कि उसने एक ग्राहक के साथ जातिसूचक गाली-गलौज की और मारपीट की। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(x) के तहत दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी। दोषी ठहराए गए व्यक्ति ने ट्रायल कोर्ट के इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।

विवाद का सारांश

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि ‘सार्वजनिक दृष्टि’ का अर्थ केवल यह नहीं है कि वहां एक से अधिक लोग मौजूद हों, बल्कि यह आवश्यक है कि कथित अपमान या धमकी ऐसी जगह हो, जहां आरोपी और पीड़ित के अलावा आम लोग उसे देख या सुन सकें। यदि घटना पूरी तरह निजी स्थान में सीमित हो, तो इस धारा के आवश्यक तत्व पूरे नहीं होते। मामले के अनुसार, शिकायतकर्ता ने आरोपी के शोरूम से लोन पर मोटरसाइकिल खरीदी थी। भुगतान से संबंधित विवाद और डिमांड ड्राफ्ट स्वीकार न करने को लेकर कहासुनी हुई, जिसके बाद आरोप लगाए गए।

SC/ST एक्ट की धारा की शर्तें

हाईकोर्ट ने पाया कि घटना के समय किसी स्वतंत्र सार्वजनिक गवाह की मौजूदगी साबित नहीं हो सकी और पूरा विवाद व्यावसायिक प्रकृति का था। ऐसे में SC/ST एक्ट की उक्त धारा लागू नहीं हो सकती। यह धारा कुछ लोगों की मौजूदगी होने पर ही लागू होती है। इस प्रकार, ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा को रद्द किया गया। हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में अन्य कानूनों के तहत कार्रवाई की संभावना से इनकार नहीं किया गया।

इनपुट (चंद्रशेखर व्यास)