राजनाथ सिंह का सिंध पर बयान: भारत का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में सिंध पर एक बयान देकर भारत और पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक संबंधों को फिर से उजागर किया है। उन्होंने कहा कि भले ही सिंध भौगोलिक रूप से पाकिस्तान में है, लेकिन यह हमेशा भारत का हिस्सा रहेगा। उनके इस बयान ने पाकिस्तान में हलचल मचा दी है। जानें इस बयान के पीछे के ऐतिहासिक संदर्भ और सिंध के साथ भारत के गहरे संबंधों के बारे में।
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राजनाथ सिंह का सिंध पर बयान: भारत का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध

सिंध पर राजनाथ सिंह का बयान

राजनाथ सिंह का सिंध पर बयान: भारत का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध

सिंध पर राजनाथ सिंह का बयान

भारत ने हमेशा POK को अपने हिस्से के रूप में मानने की बात की है, लेकिन हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के सिंध पर दिए बयान ने पाकिस्तान में हलचल मचा दी है। एक सिंधी समुदाय के कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि भले ही सिंध की भूमि भारत का हिस्सा न हो, लेकिन सांस्कृतिक दृष्टि से यह हमेशा भारत का हिस्सा रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि सीमाएं बदल सकती हैं और भविष्य में सिंध फिर से भारत का हिस्सा बन सकता है।

राजनाथ सिंह का यह बयान बिना किसी ऐतिहासिक संदर्भ के नहीं था। उन्होंने अपने दावे के समर्थन में कई ऐतिहासिक तथ्यों का उल्लेख किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सिंध का भारत से गहरा संबंध रहा है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने तुरंत इस बयान का विरोध किया, यह कहते हुए कि यह भारत की विस्तारवादी मानसिकता का प्रमाण है, जो क्षेत्रीय शांति को खतरे में डालता है।

वहीं, सिंध के एक प्रमुख नेता ने इस बयान का स्वागत किया और कहा कि सिंधी लोग हमेशा भारत की ओर आकर्षित रहे हैं। भारत के सिंधी समुदाय ने भी इस बयान का समर्थन किया, इसे खोई हुई धरोहर की पुकार बताया।


भारत का सिंध पर दावा क्यों?

हालांकि विभाजन के बाद सिंध भौगोलिक रूप से पाकिस्तान में चला गया, लेकिन इसका दिल आज भी भारत के लिए धड़कता है। जब 2005 में राष्ट्रगान से सिंध का नाम हटाने की मांग की गई, तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिंध शब्द केवल भौगोलिक स्थान से नहीं जुड़ा है, बल्कि यह भारत और सिंधी सांस्कृतिक पहचान से गहराई से संबंधित है।

सिंध नदी, जिसे पश्चिमी देशों में इंडस रिवर कहा जाता है, भारत की नदी है। राजनाथ सिंह ने कहा कि "सिंध हिंदू कभी भी पाकिस्तान के साथ पूर्ण एकीकरण को स्वीकार नहीं कर पाए। वे हमेशा भारत की ओर देखते रहे हैं।" उन्होंने अपने तर्क को मजबूत करते हुए कहा कि ऋग्वेद में सिंधु का उल्लेख है और महाभारत में सिंधु राजा जयद्रथ की कहानी सिंध की गहराई को दर्शाती है। इसके अलावा, सिंधी भाषा और लोकगीत, जैसे सिंधु तीर पर की परंपराएं, भारत के गुजरात और राजस्थान से गहराई से जुड़ी हैं।


सिंध के लिए भारत का नैतिक दायित्व

राजनाथ सिंह ने यह भी बताया कि भारत सिंधी भाइयों की रक्षा के लिए नैतिक रूप से बाध्य है। उन्होंने पाकिस्तान में सिंधी लोगों पर हो रहे उत्पीड़न, जैसे जल संसाधनों पर नियंत्रण और सांस्कृतिक दमन का उल्लेख किया, जो भारत को उनकी रक्षा करने के लिए मजबूर करता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान एक घातक जहर है, जो सिंध को निगल रहा है।


1947 में 15 लाख सिंधी हिंदू भारत आए

विभाजन के समय लगभग 15 लाख सिंधी हिंदू भारत आए। राजनाथ सिंह ने कहा कि विभाजन के बाद सिंधी समाज ने भारत में शून्य से शुरुआत की, लेकिन अपने परिश्रम और साहस से सफलता के नए आयाम स्थापित किए। आज भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में सिंधी समुदाय समाज निर्माण के विभिन्न कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इतिहास गवाह है कि भारत की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने में भी इनका योगदान उल्लेखनीय रहा है।


सिंध के साथ भारत का जुड़ा हुआ इतिहास

सिंध का ऋग्वेद और महाभारत में उल्लेख और मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता की जन्मस्थली रही है। भारत के नाम पर इसे इंडस सिविलाइजेशन के नाम से जाना जाता है। भारत की मूल पहचान की गहरी जड़ें सिंध से जुड़ी हैं। यह भारत की सबसे पुरानी नगरीय सभ्यता मानी जाती है।


सांस्कृतिक एकता पर जोर

विशेषज्ञों का मानना है कि सिंह का बयान आंतरिक राजनीति से प्रेरित हो सकता है, जहां बीजेपी सिंधी वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। हालांकि, यह कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान के साथ तनाव को और बढ़ा सकता है। सिंध पाकिस्तान का आर्थिक केंद्र है, और भारत के दावे से क्षेत्रीय समीकरण बदल सकते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि सिंह का यह बयान भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूत करने का प्रयास लगता है, जो सांस्कृतिक एकता पर जोर देता है।