भारत-रूस शिखर सम्मेलन: नई साझेदारियों की दिशा में महत्वपूर्ण कदम

भारत और रूस के बीच हाल ही में आयोजित वार्षिक शिखर सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस सम्मेलन में द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए श्रम गतिशीलता, स्वास्थ्य सहयोग, और रक्षा सहयोग जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया। दोनों देशों ने 2030 तक आर्थिक सहयोग के रणनीतिक क्षेत्रों का कार्यक्रम अपनाने का निर्णय लिया है। इस शिखर सम्मेलन ने यह स्पष्ट किया है कि भारत अपनी विदेश नीति को किसी भी दबाव के आगे झुकने नहीं दे रहा है, और यह वैश्विक संकटों में एक विश्वसनीय नेतृत्व की भूमिका निभा रहा है।
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भारत-रूस शिखर सम्मेलन: नई साझेदारियों की दिशा में महत्वपूर्ण कदम

भारत और रूस के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन

तेईसवीं भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में दोनों देशों ने अपनी विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी को अगले दशक की आवश्यकताओं के अनुरूप विस्तारित करने के लिए कई महत्वपूर्ण समझौतों और कार्यक्रमों को अंतिम रूप दिया है। दोनों नेताओं ने यह स्पष्ट किया कि द्विपक्षीय संबंध वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भी विश्वास और आपसी सम्मान पर आधारित हैं।


इस शिखर सम्मेलन में पंद्रह से अधिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिनमें श्रम गतिशीलता, अनियमित प्रवासन पर नियंत्रण, स्वास्थ्य सहयोग, खाद्य सुरक्षा, ध्रुवीय जल क्षेत्रों में जहाज़ी विशेषज्ञ प्रशिक्षण, पोत परिवहन, खाद उर्वरक आपूर्ति, सीमा शुल्क सहयोग, डाक सेवाओं का आदान-प्रदान और व्यापक मीडिया साझेदारी शामिल हैं। विज्ञान, शिक्षा और मीडिया में बहुआयामी सहयोग को नई गति देने पर भी सहमति बनी।


दोनों पक्षों ने 2030 तक आर्थिक सहयोग के रणनीतिक क्षेत्रों का कार्यक्रम अपनाने का निर्णय लिया, जिसमें व्यापार को संतुलित और सतत बढ़ाने, भुगतान तंत्रों में राष्ट्रीय मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देने और दोनों देशों की वित्तीय संदेश प्रणाली और डिजिटल मुद्रा प्लेटफ़ॉर्म को इंटरऑपरेबल बनाने पर जोर दिया गया। इसके साथ ही ऊर्जा, खनिज संसाधन, तेल गैस, परमाणु ऊर्जा और स्पेस टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में दीर्घकालिक साझेदारी को मजबूत करने का भी निर्णय लिया गया।


इसके अतिरिक्त, आईएनएसटीसी, चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री मार्ग और उत्तरी समुद्री मार्ग जैसे परिवहन गलियारों के विकास के लिए व्यापक सहयोग पर जोर दिया गया, जिससे एशिया-यूरोप आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका और मजबूत होने की संभावना है। आर्कटिक क्षेत्र में संयुक्त परियोजनाओं को तेज करने, रूस के फ़ार ईस्ट में निवेश बढ़ाने और भारतीय कार्यबल की भागीदारी की नई संभावनाओं पर भी चर्चा की गई।


रक्षा सहयोग में, दोनों देशों ने को-डेवलपमेंट और को-प्रोडक्शन पर आधारित आत्मनिर्भरता वाले मॉडल पर जोर दिया और यह सुनिश्चित करने की दिशा में सहमति जताई कि रूस निर्मित प्रणालियों के स्पेयर पार्ट्स और घटकों का निर्माण भारत में किया जा सके।


सांस्कृतिक और पर्यटन संबंधों को मजबूत करने के लिए रूस के नागरिकों के लिए तीस दिन का ई-टूरिस्ट वीज़ा निशुल्क देने की घोषणा की गई है।


दोनों देशों ने आतंकवाद के खिलाफ शून्य सहनशीलता की आवश्यकता को दोहराया और बहुपक्षीय मंचों जैसे जी20, ब्रिक्स, एससीओ और संयुक्त राष्ट्र में घनिष्ठ समन्वय जारी रखने पर सहमति जताई है।


इस शिखर सम्मेलन ने यह साबित किया है कि भारत ऐसे समय में है जब विश्व महाशक्तियाँ दो ध्रुवों में बंटी हुई हैं। भारत अपनी विदेश नीति को किसी भी दबाव के आगे झुकने नहीं दे रहा है। रूस और पश्चिम के बीच टकराव और अमेरिका तथा चीन की प्रतिद्वंद्विता के बीच, भारत ने जिस रणनीतिक स्वायत्तता का प्रदर्शन किया है, उसने उसे वैश्विक संकटों में विश्वसनीय, तटस्थ और प्रभावशाली नेतृत्व की भूमिका प्रदान की है।


महत्वपूर्ण संकेत यह है कि भारत अपने मार्गों को खुद गढ़ रहा है, चाहे वह INSTC हो, नॉर्दर्न सी रूट हो या चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर हो। ये सभी पहलें एशिया और यूरोप आपूर्ति श्रृंखला में भारत को एक निर्णायक नोड के रूप में उभारती हैं और चीन की BRI जैसी परियोजनाओं को अप्रत्यक्ष चुनौती देती हैं।


ब्रिक्स के भीतर राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार और वैकल्पिक भुगतान तंत्र पर बढ़ती चर्चा, डॉलर पर निर्भर वैश्विक वित्तीय ढाँचे में बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।


रक्षा और ऊर्जा जैसे भारत की दीर्घकालिक सुरक्षा के स्तंभ इस साझेदारी से स्थिर होते हैं। पश्चिमी प्रतिबंधों और भू-राजनीतिक अस्थिरताओं के दौर में रूस से ऊर्जा और रक्षा आपूर्ति की निरंतरता भारत के लिए रणनीतिक बीमा की तरह है। दोनों देश को-डेवलपमेंट और को-प्रोडक्शन जैसे आगे की सोच वाले मॉडल पर जा रहे हैं, जो भारतीय आत्मनिर्भरता को नई ऊँचाई देता है।


यूक्रेन संघर्ष पर भारत की भूमिका यथार्थवादी है। न तो किसी गुट के साथ खड़ा होना और न ही नैतिकता के झूठे दंभ में फँसकर राष्ट्रीय हितों से समझौता करना। यही संतुलन भारत को भविष्य में एक संभावित मध्यस्थ शक्ति के रूप में स्थापित करता है।


इस शिखर सम्मेलन ने यह दिखाया है कि भारत-रूस संबंध केवल इतिहास की विरासत नहीं, बल्कि भविष्य की भू-राजनीति का खाका हैं। पश्चिम जहाँ रूस को अलग-थलग करने में व्यस्त है, वहीं भारत यह संदेश दे रहा है कि उसकी विदेश नीति किसी प्रलोभन या दबाव की मोहताज़ नहीं है, वह केवल राष्ट्रीय हित के प्रति उत्तरदायी है।