बच्चों में पित्ताशय की पथरी: बढ़ती समस्या और सावधानियां

बच्चों में पित्ताशय की पथरी का बढ़ता मामला
पित्ताशय की पथरी को पहले केवल वयस्कों की बीमारी समझा जाता था, लेकिन अब यह समस्या भारत में बच्चों में भी तेजी से बढ़ रही है। बाल रोग विशेषज्ञ इस स्थिति के प्रति जागरूकता बढ़ाने और बचाव के उपायों पर जोर दे रहे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, देश के अस्पतालों और क्लीनिकों में बच्चों में पित्ताशय की पथरी के मामलों में वृद्धि हो रही है, जो स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।
यह समस्या आमतौर पर मध्य आयु वर्ग के लोगों में देखी जाती थी, लेकिन अब छह साल के बच्चों में भी इसके मामले सामने आ रहे हैं, जिससे चिकित्सकों की चिंता बढ़ गई है। पित्ताशय की पथरी, पित्ताशय में बनने वाले छोटे कठोर पत्थरों के रूप में होती है, जो कोलेस्ट्रॉल या बिलीरुबिन से बनते हैं। जब ये पत्थर पित्ताशय या पित्त नली में फंस जाते हैं, तो पेट में तेज दर्द, मतली, उल्टी और पाचन संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
सर्वेक्षण के निष्कर्ष
‘इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स’ (आईएपी) द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि पेट दर्द की शिकायत लेकर आने वाले लगभग हर 200 बच्चों में से एक में पित्ताशय की पथरी की समस्या पाई गई। यह समस्या विशेष रूप से उन बच्चों में अधिक देखी गई है जो आलसी हैं और अधिक जंक फूड तथा तले-भुने खाने का सेवन करते हैं।
‘एकेडमी ऑफ फैमिली फिजिशियंस ऑफ इंडिया’ के चेयरमैन डॉ. रमण कुमार ने समय पर उचित उपचार की आवश्यकता पर जोर दिया।
इलाज के तरीके
डॉक्टरों का कहना है कि पित्ताशय की पथरी का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका है। कई मामलों में, खासकर जब बच्चों में कोई लक्षण नहीं होते, दवाओं और खानपान में बदलाव से इलाज किया जा सकता है। लेकिन जब पथरी के कारण पित्ताशय में सूजन या पैनक्रिएटाइटिस जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, तो सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।
जहां बच्चों में लक्षण स्पष्ट होते हैं, वहां लैप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टॉमी सबसे सामान्य उपचार है।
लक्षण रहित बच्चों के लिए सलाह
हालांकि, उन बच्चों के लिए समस्याएं उत्पन्न होती हैं जिनमें अल्ट्रासाउंड में पथरी पाई जाती है लेकिन कोई खास लक्षण नहीं होते। डॉ. सिन्हा का कहना है कि बिना लक्षण वाले बच्चों के लिए कुछ समय इंतजार किया जाता है या आवश्यकता पड़ने पर सर्जरी की जाती है।
उन्होंने कहा, "माता-पिता को इस दौरान उत्पन्न होने वाली जटिलताओं के जोखिम को समझना चाहिए और आपसी सहमति के आधार पर उचित निर्णय लेना चाहिए। कई माता-पिता पीलिया या अग्नाशय की सूजन जैसी समस्याओं के जोखिम को नहीं लेना चाहते और इसलिए जल्दी सर्जरी करवाने का विकल्प चुनते हैं।"