ट्रंप और पुतिन की बैठक: रूस-यूक्रेन संघर्ष में शांति की संभावनाएं

बैठक का उद्देश्य
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शुक्रवार को अलास्का के एंकोरेज में मिलेंगे। यह बैठक रूस और यूक्रेन के बीच तीन साल से चल रहे युद्ध के लिए एक संभावित संघर्ष विराम की दिशा में कदम बढ़ाने का प्रयास है।
ट्रंप ने पहले यह चिंता जताई थी कि भारत द्वारा कच्चे तेल की खरीद से रूस की सैन्य शक्ति को वित्तीय सहायता मिल रही है, जो यूक्रेन के खिलाफ उसके युद्ध को बढ़ावा दे रही है। अमेरिका और रूस के बीच यह हालिया बैठक एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है, जो भारत के लिए भी फायदेमंद हो सकती है।
पुतिन के साथ बैठक से पहले ट्रंप का विश्वास
ट्रंप ने पुतिन के साथ अपनी बैठक से पहले कहा कि उन्हें विश्वास है कि पुतिन अब शांति की दिशा में आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। यह शिखर सम्मेलन 15 अगस्त को संयुक्त बेस एल्मेंडॉर्फ-रिचर्डसन में आयोजित होगा। ट्रंप ने संवाददाताओं से कहा, "मुझे लगता है कि राष्ट्रपति पुतिन शांति बनाएंगे और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की भी ऐसा करेंगे।"
दूसरी बैठक की योजना
पुतिन के साथ अपनी मुख्य बैठक के अलावा, ट्रंप ने यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के साथ एक अनुवर्ती बैठक की योजना बनाई है, जिसमें संभवतः यूरोपीय नेता भी शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि यह बैठक पहली बैठक से अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है।
"हम कल राष्ट्रपति पुतिन के साथ बैठक करेंगे। मुझे लगता है कि यह एक अच्छी बैठक होगी, लेकिन दूसरी बैठक अधिक महत्वपूर्ण होगी। हम राष्ट्रपति पुतिन, राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की, और मुझे मिलाकर एक बैठक करेंगे," ट्रंप ने कहा।
संघर्ष का संदर्भ
ट्रंप ने रूस-यूक्रेन संघर्ष को "बाइडेन का युद्ध" कहा और जोर देकर कहा कि यदि वह राष्ट्रपति होते, तो यह संघर्ष कभी नहीं होता। उन्होंने पहले कहा था कि वह "पहले दो मिनट" में जान जाएंगे कि क्या कोई समझौता हो सकता है।
एजेंडा पर चर्चा
दोनों नेता रूस और यूक्रेन के बीच संभावित संघर्ष विराम के लिए शर्तों पर चर्चा करेंगे। एजेंडे में यह भी शामिल है कि ऐसा समझौता कैसे काम कर सकता है, जिसमें दोनों पक्षों पर संभावित क्षेत्रीय रियायतें शामिल हैं। ट्रंप ने सोमवार को सुझाव दिया कि यूक्रेन और रूस एक-दूसरे के क्षेत्र का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि पुतिन यूक्रेन से डोनेट्स्क के उन हिस्सों को छोड़ने के लिए दबाव डालेंगे, जिन पर अभी भी उनके सैनिकों का नियंत्रण है। इससे रूस को डोनबास क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण मिल जाएगा।