जयपुर के टाउन हॉल विवाद में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

जयपुर के ऐतिहासिक टाउन हॉल को लेकर चल रहे विवाद में राजस्थान हाईकोर्ट ने इसे सरकारी संपत्ति मानते हुए राजघराने के दावों को खारिज कर दिया। राजपरिवार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दों पर विचार किया और राज्य सरकार से जवाब मांगा। इस मामले में 1949 के समझौते और अनुच्छेद 363 की व्याख्या पर चर्चा की गई। जानें इस विवाद की पूरी कहानी और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां।
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जयपुर के टाउन हॉल विवाद में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

राजस्थान हाईकोर्ट का निर्णय

जयपुर के ऐतिहासिक टाउन हॉल (पुरानी विधानसभा) को लेकर चल रहे विवाद में राजस्थान हाईकोर्ट ने इसे सरकारी संपत्ति मानते हुए राजघराने के दावों को खारिज कर दिया।


सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

इसके बाद, राजपरिवार के सदस्य पद्मिनी देवी, दीया कुमारी और पद्मनाभ सिंह ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इस मामले की सुनवाई 2 जून (सोमवार) को हुई।


कानूनी पेचीदगियां

याचिकाकर्ताओं के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि यह मामला कई कानूनी जटिलताओं से भरा हुआ है। उन्होंने बताया कि इसमें संविधान के अनुच्छेद 362 और 363 के तहत पूर्व शासकों और रजवाड़ों के विशेषाधिकार शामिल हैं।


सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर टिप्पणी की कि यदि आप बिना भारत संघ को पक्ष बनाए ऐसा करते हैं, तो पूरा जयपुर आपका हो जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर अनुच्छेद 363 लागू नहीं होता है, तो हर कोई सरकारी संपत्तियों पर दावा कर सकता है।


राज्य सरकार की स्थिति

राजघराने के वकील ने यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, जबकि राज्य के वकील ने जवाब देने के लिए 6 सप्ताह का समय मांगा। कोर्ट ने नोटिस जारी किया और कहा कि राज्य इस मामले में एसएलपी के लंबित रहने का सम्मान करेगा।


मामले का इतिहास

1949 में महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय और भारत सरकार के बीच हुए समझौते के तहत टाउन हॉल समेत कुछ संपत्तियां सरकारी उपयोग के लिए दी गई थीं। 2022 में गहलोत सरकार के म्यूजियम बनाने के फैसले के बाद शाही परिवार ने आपत्ति जताई।


सुप्रीम कोर्ट की जांच

शाही परिवार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, यह तर्क देते हुए कि अनुच्छेद 363 की व्याख्या सीमित होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की गहराई से जांच करेगा कि क्या अनुच्छेद 363 पुराने समझौतों पर लागू होता है।