चित्रकूट में ऐतिहासिक गधा मेला: श्रद्धालुओं की भीड़ और व्यापार की धूम

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में चल रहे दीपदान अमावस्या मेले के साथ-साथ ऐतिहासिक गधा मेला भी आयोजित हो रहा है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु और व्यापारी शामिल हो रहे हैं, जहाँ गधों की खरीद-फरोख्त की जा रही है। गधों की कीमत 5 हजार से लेकर तीन लाख रुपये तक है, और इनमें से कई गधों के नाम प्रसिद्ध फिल्मी सितारों पर रखे गए हैं। हालांकि, इस ऐतिहासिक मेले को सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे इसकी परंपरा खतरे में है।
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चित्रकूट में ऐतिहासिक गधा मेला: श्रद्धालुओं की भीड़ और व्यापार की धूम

चित्रकूट में दीपदान अमावस्या मेला

चित्रकूट में ऐतिहासिक गधा मेला: श्रद्धालुओं की भीड़ और व्यापार की धूम


उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जनपद में पांच दिवसीय दीपदान अमावस्या मेला चल रहा है, जिसमें लाखों श्रद्धालु दर्शन और पूजा के लिए आए हैं। इस दौरान एक और मेला, जो ऐतिहासिक गधा मेला कहलाता है, भी आयोजित किया जा रहा है। यह मेला मंदाकनी नदी के किनारे होता है और यह औरंगजेब के समय से चला आ रहा है। यहाँ विभिन्न प्रदेशों से व्यापारी गधों की खरीद-फरोख्त के लिए आते हैं।


गधों की संख्या और कीमत

इस बार के गधा मेले में लगभग पंद्रह हजार गधे विभिन्न प्रदेशों से आए हैं, जिनकी कीमत 5 हजार से लेकर तीन लाख रुपये तक है। इनमें से कई गधों के नाम फिल्मी सितारों और प्रसिद्ध व्यक्तियों पर रखे गए हैं, जैसे कि लॉरेंस विश्नोई, अमिताभ बच्चन, काजोल, शाहरुख़ खान, सलमान खान, और आलिया भट्ट।


गधों की बिक्री

गधा व्यापारियों ने इन जानवरों की जांच-पड़ताल के बाद खरीदारी की। मेले के तीन दिनों में लगभग आठ हजार गधे बिक गए। गधों की नस्ल और कद-काठी के अनुसार उनकी बोली लगाई गई, और उनके नामों के आधार पर भी कीमतें तय की गईं।


ऐतिहासिक महत्व

यह मेला औरंगजेब के समय से आयोजित होता आ रहा है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और अन्य प्रांतों के व्यापारी यहाँ गधों की खरीद-फरोख्त के लिए आते हैं। औरंगजेब ने चित्रकूट के इस मेले से अपनी सेना में गधों और खच्चरों को शामिल किया था, जिससे इस मेले का ऐतिहासिक महत्व बढ़ गया है। यहाँ एक लाख रुपये तक के गधे बिकते हैं।


सुविधाओं की कमी

मुगल काल से चली आ रही इस परंपरा को अब सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। मेले में व्यापारियों को न तो पीने का पानी मिलता है और न ही छाया। सुरक्षा के लिए होमगार्ड के जवान भी नहीं तैनात किए जाते। व्यापारियों को चाहे उनके जानवर बिकें या न बिकें, ठेकेदार उनसे पैसे वसूलते हैं। इस स्थिति में यह ऐतिहासिक गधा मेला अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है, और धीरे-धीरे व्यापारियों की संख्या में कमी आ रही है।