कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने छत्तीसगढ़ में कोयला खनन परियोजना की पर्यावरण मंजूरी पर उठाए सवाल

पर्यावरण मंजूरी पर कांग्रेस की आपत्ति
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने रविवार को छत्तीसगढ़ में एक कोयला खनन परियोजना को दी गई पर्यावरण मंजूरी की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत वनों में रहने वाले समुदायों के अधिकारों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
पूर्व पर्यावरण मंत्री रमेश ने बताया कि 15 जनवरी 2024 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की भोपाल पीठ ने 209 पन्नों का एक निर्णय सुनाया, जिसमें छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के गारे पाल्मा, सेक्टर-2 में कोयला खनन के लिए 11 जुलाई 2022 को दी गई पर्यावरण मंजूरी को रद्द कर दिया गया।
रमेश ने कहा कि यह खुली खदान 14 गांवों में 6,300 एकड़ से अधिक भूमि पर फैली हुई है, जिसमें लगभग आठ प्रतिशत हिस्सा समृद्ध वन क्षेत्र है।
उन्होंने कहा, "निर्णय में यह स्पष्ट किया गया है कि पर्यावरण मंजूरी देने के लिए कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।" कांग्रेस नेता ने बताया कि इसमें यह भी कहा गया है कि सार्वजनिक सुनवाई की आवश्यकता को पूरा नहीं किया गया।
रमेश ने इस फैसले का उल्लेख करते हुए कहा, "इस परियोजना के जनस्वास्थ्य, जलविज्ञान और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव का समुचित मूल्यांकन नहीं किया गया।"
उन्होंने आगे कहा, "हालांकि, कुछ महीनों के भीतर ही इस परियोजना को फिर से पर्यावरणीय स्वीकृति दे दी गई है। अब इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई शुरू हो चुकी है। क्या हमें इस पर आश्चर्य होना चाहिए? शायद नहीं, क्योंकि इस खदान का संचालक अदाणी समूह है।"
उन्होंने यह भी कहा कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत सामुदायिक वन अधिकारों की प्रक्रिया को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
रमेश ने एक रिपोर्ट साझा की, जिसमें दावा किया गया था कि छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के तमनार तहसील के मुड़ागांव और सरायटोला गांवों में 26 और 27 जून को गारे पाल्मा सेक्टर-2 कोयला ब्लॉक में खनन के लिए कम से कम 5,000 पेड़ काटे गए थे।