करवा चौथ व्रत का इतिहास: कैसे शुरू हुआ यह पावन पर्व?
करवा चौथ व्रत भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है। यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। इसके पीछे कई रोचक पौराणिक कथाएं हैं, जैसे देवताओं और दानवों का युद्ध, साहसी करवा की कहानी, और वीरवती की कथा। जानें इस पर्व की उत्पत्ति और इसके महत्व के बारे में।
Oct 9, 2025, 20:20 IST
|

करवा चौथ व्रत का इतिहास

करवा चौथ व्रत का इतिहासImage Credit source: Media House
करवा चौथ व्रत की उत्पत्ति: भारतीय संस्कृति में करवा चौथ का पर्व विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह त्योहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, जिसमें महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए उपवास करती हैं। इस दिन वे निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं। लेकिन इस पर्व की शुरुआत कैसे हुई? करवा चौथ की परंपरा कई सदियों पुरानी है और इसके पीछे कई रोचक पौराणिक कथाएं हैं।
करवा चौथ की शुरुआत: देवताओं और दानवों का युद्ध
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। यह युद्ध इतना भयानक था कि देवताओं की हार होने लगी। सभी देवता ब्रह्मदेव के पास सहायता के लिए गए। ब्रह्मदेव ने देवताओं की पत्नियों को सलाह दी कि वे कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को अपने पतियों की सुरक्षा के लिए कठोर उपवास रखें और सच्चे मन से प्रार्थना करें।
ब्रह्मदेव के निर्देशानुसार, सभी देव पत्नियों ने इस व्रत का पालन किया। उनके अटूट विश्वास और समर्पण के कारण देवताओं को युद्ध में विजय प्राप्त हुई। जब देवताओं की जीत का समाचार मिला, तो देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला। उस समय चंद्रमा भी आकाश में प्रकट हुआ था। इस प्रकार से सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए इस व्रत को रखने की परंपरा शुरू हुई। यही कारण है कि इस दिन चंद्रमा को देखकर व्रत खोला जाता है।
साहसी करवा की कहानी
करवा चौथ के नाम के पीछे एक और पौराणिक कथा है, जिसमें साहसी करवा नामक महिला ने अपने पतिव्रता धर्म के बल पर यमराज से अपने पति की जान वापस ली थी। कथा के अनुसार, करवा अपने पति से बहुत प्रेम करती थी। एक बार जब उसका पति नदी में स्नान कर रहा था, एक मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया। करवा ने अपने पतिव्रता बल से मगरमच्छ को एक कच्चे धागे से बांध दिया और यमराज से प्रार्थना की। करवा ने यमराज से कहा कि वह मगरमच्छ को दंड दें और उसके पति को जीवनदान दें। जब यमराज ने मना किया, तो करवा ने उन्हें श्राप देने की चेतावनी दी।
करवा के अटूट प्रेम और साहस को देखकर यमराज भयभीत हो गए। यमराज ने मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया। इस घटना के बाद से ही करवा के नाम पर इस व्रत का नाम करवा चौथ पड़ा और यह व्रत पति की रक्षा का प्रतीक बन गया।
वीरवती की कहानी
एक और कथा वीरावती नामक रानी की है, जिसे करवा चौथ का व्रत तोड़ने का गंभीर परिणाम भुगतना पड़ा। वीरावती अपने सात भाइयों की इकलौती बहन थी। शादी के बाद जब उसने पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा, तो भूख-प्यास से वह बहुत परेशान हो गई। उसके भाइयों ने उसकी पीड़ा देखी और छल से पहाड़ी पर दीपक जलाकर उसे चांद जैसा दिखा दिया। वीरावती ने उसे चाँद समझकर अर्घ्य देकर व्रत खोल लिया। व्रत के इस गलत तरीके से टूटने के कारण उसके पति की मृत्यु हो गई। इस घटना से वीरावती अत्यंत दुखी हुई।
जब वीरावती को सच्चाई का पता चला, तो उसने पूरे साल की चतुर्थी का व्रत करते हुए अगले करवा चौथ पर विधिपूर्वक व्रत का पालन किया। उसके प्रेम और निष्ठा से चौथ माता प्रसन्न हुईं और उसके पति को पुनः जीवनदान मिला। मान्यता है कि तभी से छलनी से चांद को देखने की परंपरा चली आ रही है ताकि किसी भी प्रकार के भ्रम या छल से बचा जा सके।