ईरान-इराक रक्षा समझौता: अमेरिका की चिंताएँ और प्रतिक्रिया

हाल ही में ईरान और इराक के बीच हुए रक्षा समझौते ने अमेरिका के लिए नई चिंताएँ पैदा कर दी हैं। यह समझौता सीमा सुरक्षा को मजबूत करने के उद्देश्य से किया गया है, लेकिन अमेरिका को डर है कि इससे ईरान का प्रभाव इराक में बढ़ सकता है। जानें इस समझौते की पृष्ठभूमि और अमेरिका की चिंताओं के बारे में।
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ईरान-इराक रक्षा समझौता: अमेरिका की चिंताएँ और प्रतिक्रिया

ईरान और इराक के बीच तनाव का नया कारण

अमेरिका और इराक के संबंधों में सहयोग और तनाव का एक जटिल मिश्रण देखने को मिलता है। हाल ही में, ईरान और इराक के बीच एक रक्षा समझौते ने इन संबंधों में तनाव को बढ़ा दिया है।


यह समझौता 11 अगस्त को हुआ, जिसका उद्देश्य 1400 किलोमीटर लंबी साझा सीमा पर सुरक्षा उपायों को मजबूत करना है। इस डील पर इराक के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कासिम अल आराजी और ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के महासचिव अली लारिजानी की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए। इराक के प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल सुदानी भी इस अवसर पर मौजूद थे.


समझौते की पृष्ठभूमि

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, यह नया समझौता मार्च 2023 में हुए एक करार पर आधारित है, जिसमें ईरान और इराकी कुर्दिस्तान ने सीमा नियंत्रण को सख्त करने पर सहमति जताई थी। पिछले साल सितंबर में महसा अमीनी की हिरासत में मौत के बाद ईरान में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे, जिससे तनाव बढ़ा।


हाल ही में, इराकी कुर्द प्रशासन ने ईरानी कुर्द विपक्षी समूहों पर दबाव डालकर उनके लड़ाकों को हथियार छोड़ने के लिए मजबूर किया, लेकिन कुछ ने ईरान लौटकर IRGC के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध जारी रखने का निर्णय लिया।


अमेरिका की चिंताएँ

अमेरिका को इस डील से कई चिंताएँ हैं।


1. अमेरिका को आशंका है कि ईरान का प्रभाव इराक में बढ़ेगा, जिससे उसकी पकड़ कमजोर होगी। अमेरिका चाहता है कि इराक में ईरान समर्थित मिलिशिया का प्रभाव कम हो।


2. अमेरिका की चिंता यह भी है कि ईरान समर्थित समूहों के पास मीडियम-रेंज मिसाइल और ड्रोन जैसे हथियार हैं, जो इजराइल और अमेरिकी ठिकानों पर हमले की क्षमता रखते हैं।


3. इसके अलावा, अमेरिका चाहता है कि पीएमएफ (Popular Mobilisation Forces) के कुछ हिस्सों को समाप्त किया जाए या सरकारी नियंत्रण में लाया जाए।