असम में बाढ़ और कटाव: ब्रह्मपुत्र की कहर से प्रभावित गांवों की दास्तान

असम में ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ और कटाव ने कई गांवों को प्रभावित किया है। स्थानीय लोग अपने घरों और खेतों के नुकसान से जूझ रहे हैं, जबकि प्रशासन की प्रतिक्रिया धीमी है। इस संकट के बीच, लोग सरकार से तत्काल कार्रवाई की अपील कर रहे हैं। जानिए इस त्रासदी की पूरी कहानी और प्रभावित क्षेत्रों की स्थिति।
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असम में बाढ़ और कटाव: ब्रह्मपुत्र की कहर से प्रभावित गांवों की दास्तान

ब्रह्मपुत्र का कहर


असम के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में ब्रह्मपुत्र का गर्जन एक साथ आशीर्वाद और श्राप दोनों है। हर साल, यह नदी खेतों को पोषण देती है और लाखों लोगों का जीवन यापन करती है, लेकिन जब मानसून की बारिश से इसका जलस्तर बढ़ता है, तो यह विकराल रूप धारण कर लेती है, घरों, खेतों और जीवन को निगल जाती है।


गांवों की दयनीय स्थिति

जलेश्वर के गोलपारा जिले के सतभांडी, ताकिमारी और तारियर्बिता गांवों में स्थिति बेहद दुखद है। नदी के किनारे धंस रहे हैं, घर गायब हो रहे हैं, और परिवार अस्थायी शेड में रह रहे हैं, जो मानसून की मार और तेज धूप के सामने बेबस हैं।


एक स्थानीय निवासी ने कहा, "मेरे पास जाने के लिए कहीं नहीं है; मेरा घर, मेरे खेत सब कुछ चला गया। हम पड़ोसियों की मदद पर निर्भर हैं। स्थानीय विधायक ने एक बार आकर हमें जियो-बैग दिए, लेकिन नदी जियो-बैग के लिए नहीं रुकती।"


प्रशासन की लापरवाही

स्थानीय लोग बताते हैं कि ब्रह्मपुत्र की क्रोध की कहानी नई नहीं है — वर्षों से कटाव गांवों को निगल रहा है, लेकिन प्रशासन की प्रतिक्रिया हमेशा धीमी रही है। एक किसान ने कहा, "हमें इस बार 500 जियो-बैग दिए गए थे, लेकिन नदी ने उन्हें भी ले लिया। अब यह हमें ले जा रही है।"


बाढ़ और कटाव का दुष्चक्र

असम में बाढ़ और कटाव एक साथ चलते हैं — जैसे ही पानी घटता है, कमजोर तटबंध और ढीली मिट्टी छोड़ जाता है, जिसे ब्रह्मपुत्र धीरे-धीरे निगल जाती है। यह त्रासदी माजुली में सबसे अधिक स्पष्ट है, जो दुनिया का सबसे बड़ा बसा हुआ नदी द्वीप है।


माजुली, जो एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है, अब ब्रह्मपुत्र के निरंतर हमले के खतरे में है। हाल की बाढ़ के बाद, भकत चापोरी जैसे क्षेत्रों में गंभीर कटाव ने घरों, खेतों और पीढ़ियों की यादों को मिटा दिया है।


तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता

असम में कटाव कोई नई समस्या नहीं है। हर साल, उपजाऊ खेतों का बड़ा हिस्सा खो जाता है, हजारों लोग रातोंरात बेघर हो जाते हैं, और सरकार की योजनाएं और तटबंध अक्सर ब्रह्मपुत्र की ताकत के सामने बेकार साबित होते हैं।


विशेषज्ञों का कहना है कि दीर्घकालिक समाधान, जैसे नदी के तल की खुदाई, आधुनिक जियो-मैटेरियल से तटबंधों को मजबूत करना, और संवेदनशील समुदायों को स्थानांतरित करना, राजनीतिक इच्छाशक्ति और मजबूत वित्तपोषण की आवश्यकता है।


सरकार की प्रतिक्रिया

हाल ही में, जल संसाधन मंत्री पिजुश हजारिका ने कहा कि विभाग संकट को नियंत्रित करने के लिए "युद्ध स्तर" पर काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि अस्थायी उपायों के तहत नदी के प्रवाह को धीमा करने के लिए पोरकुपाइन संरचनाएं स्थापित की गई हैं।


हजारिका ने यह भी कहा कि जैसे ही मानसून खत्म होगा, स्थायी कटाव-नियंत्रण कार्य शुरू होंगे, जिसमें तटबंधों को मजबूत करने के लिए बड़े जियो-बैग का उपयोग किया जाएगा।