सहदेवी: एक अद्भुत औषधीय पौधा और इसके लाभ

सहदेवी का परिचय

सहदेवी एक नाजुक पौधा है, जिसकी ऊँचाई एक से तीन फीट तक होती है। यह पौधा भले ही दिखने में कोमल हो, लेकिन तंत्र शास्त्र और आयुर्वेद में इसकी महत्ता किसी विशेषज्ञ से कम नहीं है। इसके अद्भुत गुणों के कारण इसे देवी का दर्जा प्राप्त है। सहदेवी की पत्तियाँ तुलसी या पोदिना की पत्तियों के समान पतली होती हैं, और इसके सफेद फूल होते हैं। यह पौधा विशेष रूप से बलुई मिट्टी में अधिक पाया जाता है।
सहदेवी के नाम और उपयोग
संस्कृत में: महबला, सहदेवी, सहदेवा, डंडोत्पला, गोवन्दनी, विष्मज्वर्णशनी, विश्वदेवा
हिंदी में: सहदेवी, सदोई, सदोडी, सहदेई
बंगला में: पीत पुष्प, कुक्षिप, कला जीरा
गुजराती: सेदर्ड़ी, सहदेवी, कालो सेदड़ो
मराठी: भांवुर्डी, सदोड़ी, सहदेवी
पंजाब: सहदेवी
तमिल: सहदेवी
इंग्लिश: Ash-coloured Fleabane
लेटिन: Bernini’s cinema
प्रयोजन अंग: मूल, पुष्प, बीज एवं पंचांग
स्वाद: तीखा
गुण: स्वेदजन्न, कृमिघ्र, शोथघ्र
उपयोग: जलोधर और विषम ज्वर में इसके मूल का प्रयोग लाभकारी है। इसके बीज कृमि रोग में भी सहायक होते हैं।मात्रा: स्वरस 6 माशा से 1 तोला और बीज 4 रत्ती से एक माशा, क्वाथ 20 मिली से 30 मिली।
सहदेवी के 36 अद्भुत लाभ
सहदेवी के 36 चमत्कारी फायदे:
- ज्वर में पसीना लाने के लिए इसका काढ़ा या स्वरस दिया जाता है।
- बिस्फोटक में सहदेई के पंचांग का कल्क बना कर लेप करने से सभी प्रकार के विस्फोटकों का नाश होता है।
- मूत्रदाह रोग में इसका स्वरस दिया जाता है।
- उद्वेष्टन रोग में इसका स्वरस दिया जाता है।
- थोथयुक्त भाग पर इसका स्वरस लेप करने से लाभ होता है।
- कृमि रोग में इसके बीज शहद के साथ देने से कृमियों का नाश होता है।
- अर्श (बवासीर) में इसके पंचांग से लाभ होता है।
- सहदेई का मूल सर के पास रखकर सोने से निद्रा आती है।
- अश्मरी (पथरी) में इसके पत्तों का स्वरस और 3-4 तुलसी के पत्तों का स्वरस देने से एक सप्ताह में अश्मरी टूटकर बाहर आ जाती है।
- मुख रोग में इसके मूल का क्वाथ बनाकर कुल्ला करने से लाभ होता है।
- ज्वर में इसके मूल का क्वाथ बनाकर पिलाने से पसीना आता है और ज्वर उतर जाता है।
- कुष्ट रोग में पीत पुष्प वाली सहदेई का स्वरस पीने से लाभ होता है।
- सहदेवी पौधे की जड़ के सात टुकड़े करके कमर में बांधने से अतिसार रोग मिट जाता है।
- इसके नन्हे पौधे गमले में लगाकर सोने के कमरे में रख देने से बहुत अच्छी नींद आती है।
- यह बहुत कोमल प्रकृति का होता है। बुखार होने पर इसे बच्चों को भी दिया जा सकता है।
- इसका 1-3 ग्राम पंचांग और 3-7 काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बनाकर सुबह शाम लें। यह लीवर के लिए भी बहुत अच्छा होता है।
- अगर रक्तदोष है, खाज खुजली है, त्वचा की सुंदरता चाहिए तो 2 ग्राम सहदेवी का पाउडर खाली पेट लें।
- कंठमाला रोग में इसकी जड़ गले में बांधने से शीघ्र रोग मुक्ति होती है।
- यदि कोई स्त्री मासिक धर्म से पांच दिन पूर्व तथा पांच दिन पश्चात तक गाय के घी में सहदेवी का पंचांग सेवन करे तो गर्भ स्थिर होता है।
- इसको दूध में पीसकर नस्य लेने से स्वस्थ संतान पैदा होती है।
- प्रसव-वेदना निवारक इसकी जड़ तेल में घिसकर जन्नेद्रिये पर लेप करने से प्रसव पीड़ा से मुक्ति मिलती है।
- सहदेई के पत्ते काली मिर्च के साथ पीसकर पीने से लंबे समय का ज्वर चला जाता है।
- सहदेई की ठंडाई पिलाने से बालक को शीतला नहीं निकलती है।
- सहदेई के पत्ते उबालकर बांधने से मस्तक की भीतरी पीड़ा शांत होती है।
- सफेद फूल वाली सहदेई के पत्ते का रस निकालकर कड़वी तोमड़ी की मिंगी और गुजराती तंबाकू मिलाकर घोटने से मृगी रोग शांत होता है।
- सफेद सहदेई के फूल और काली सहदेई का पत्ता उबालकर सिर पर बांधने से लकवा रोग दूर होता है।
- सहदेई के पत्तों का काजल लगाने से दुखती हुई आंखें ठीक हो जाती हैं।
- सहदेई के पत्ते घोटकर पीने से सभी प्रकार के ज्वर और पथरी रोग दूर होते हैं।
- अर्क पीने से वाय गोला दूर होता है।
- इसकी जड़ तेल में पीसकर घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाता है।
- इसका अर्क कान में टपकाने से मृगी रोग दूर हो जाता है।
- इसकी जड़ सिर में बांधने से ज्वर दूर होता है।
- सहदेई का पंचांग पीने से रक्त प्रदर रोग दूर होता है।
- इसकी लुगदी में पारा फूंका जाता है।
- सहदेई का पंचांग पीने से श्वेत प्रदर रोग दूर होता है।
- हरिताल के साथ इसकी जड़ का लेप करने से श्लीपद (हाथीपांव) रोग में लाभ होता है।