सहदेवी पौधे के अद्भुत लाभ और उपयोग
सहदेवी, जिसे सहदेई भी कहा जाता है, एक नाजुक लेकिन शक्तिशाली औषधीय पौधा है। इसकी ऊँचाई एक से साढ़े तीन फुट तक होती है और यह कई अद्भुत गुणों से भरपूर है। आयुर्वेद में इसके उपयोग के कारण इसे देवी का दर्जा मिला है। इस लेख में हम सहदेवी के 36 चमत्कारी फायदों के बारे में जानेंगे, जैसे ज्वर, मूत्रदाह, और अन्य रोगों में इसके उपयोग। जानें कैसे यह पौधा आपके स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो सकता है।
Jul 17, 2025, 09:35 IST
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सहदेवी का परिचय

सहदेवी या सहदेई (Ash Fleabane) की जानकारी:
- सहदेवी एक नाजुक पौधा है, जिसकी ऊँचाई एक से साढ़े तीन फुट तक होती है। यह पौधा भले ही कोमल हो, लेकिन तंत्र शास्त्र और आयुर्वेद में इसकी महत्ता किसी विशेषज्ञ से कम नहीं है। इसके अद्भुत गुणों के कारण इसे देवी का दर्जा मिला है। इसकी पत्तियाँ तुलसी या पोदिना की पत्तियों के समान पतली होती हैं, और इसके सफेद फूल होते हैं। यह पौधा मुख्यतः बलुई मिट्टी में पाया जाता है।
सहदेवी के नाम और उपयोग
संस्कृत में इसे महबला, सहदेवी, सहदेवा, डंडोत्पला, गोवन्दनी, विष्मज्वर्णशनी, और विश्वदेवा कहा जाता है। हिंदी में इसे सहदेवी, सदोई, और सदोडी के नाम से जाना जाता है।
उपयोग: इसके मूल, पुष्प, बीज और पंचांग का उपयोग किया जाता है। इसका स्वाद तीखा होता है और इसके गुणों में स्वेदजन्न, कृमिघ्र, और शोथघ्र शामिल हैं।
सहदेवी के 36 अद्भुत लाभ
सहदेवी के फायदे:
- ज्वर में पसीना लाने के लिए इसका काढ़ा या स्वरस दिया जाता है।
- बिस्फोटक में सहदेई के पंचांग का लेप करने से सभी प्रकार के विस्फोटकों का नाश होता है।
- मूत्रदाह रोग में इसका स्वरस दिया जाता है।
- उद्वेष्टन रोग में इसका स्वरस लाभकारी होता है।
- थोथयुक्त भाग पर इसका स्वरस लगाने से लाभ होता है।
- कृमि रोग में इसके बीज शहद के साथ देने से कृमियों का नाश होता है।
- अर्श (बवासीर) में इसके पंचांग से लाभ होता है।
- सहदेई का मूल सर के पास रखकर सोने से निद्रा आती है।
- अश्मरी (पथरी) में इसके पत्तों का स्वरस और तुलसी के पत्तों का स्वरस मिलाकर सेवन करने से एक सप्ताह में अश्मरी बाहर आ जाती है।
- मुख रोग में इसके मूल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से लाभ होता है।
- कुष्ट रोग में पीत पुष्प वाली सहदेई का स्वरस पीने से लाभ होता है।
- सहदेवी पौधे की जड़ के सात टुकड़े करके कमर में बांधने से अतिसार रोग मिट जाता है।
- इसके नन्हे पौधे गमले में रखकर सोने के कमरे में रखने से अच्छी नींद आती है।
- यह बच्चों को भी दिया जा सकता है।
- 1-3 ग्राम पंचांग और 3-7 काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम लेने से यह लीवर के लिए लाभकारी होता है।
- यदि रक्तदोष, खाज खुजली या त्वचा की सुंदरता चाहिए तो 2 ग्राम सहदेवी का पाउडर खाली पेट लें।
- कंठमाला रोग में इसकी जड़ गले में बांधने से शीघ्र रोग मुक्ति होती है।
- यदि कोई स्त्री मासिक धर्म से पहले और बाद में सहदेवी का सेवन करे तो गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।
- दूध में पीसकर नस्य लेने से स्वस्थ संतान होती है।
- प्रसव-वेदना निवारक इसकी जड़ तेल में घिसकर लेप करने से प्रसव पीड़ा से राहत मिलती है।
- सहदेई के पत्ते काली मिर्च के साथ पीसकर पीने से ज्वर दूर होता है।
- सहदेई की ठंडाई पिलाने से बालक को शीतला नहीं निकलती है।
- सहदेई के पत्ते उबालकर बांधने से मस्तिष्क की पीड़ा शांत होती है।
- सफेद फूल वाली सहदेई के पत्तों का रस निकालकर कडवी तोमड़ी और गुजराती तंबाकू मिलाकर घोटने से मृगी रोग शांत होता है।
- सफेद सहदेई के फूल और काली सहदेई का पत्ता उबालकर सिर पर बांधने से लकवा रोग दूर होता है।
- सहदेई के पत्तों का काजल लगाने से आंखों की समस्या ठीक होती है।
- सहदेई के पत्ते घोटकर पीने से सभी प्रकार के ज्वर और पथरी रोग दूर होते हैं।
- अर्क पीने से वाय गोला दूर होता है।
- इसकी जड़ को तेल में पीसकर घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाता है।
- इसका अर्क कान में डालने से मृगी रोग दूर होता है।
- इसकी जड़ सिर में बांधने से ज्वर दूर होता है।
- सहदेई का पंचांग पीने से रक्त प्रदर रोग दूर होता है।
- इसकी लुगदी में पारा फूंका जाता है।
- सहदेई का पंचांग पीने से श्वेत प्रदर रोग दूर होता है।
- हरिताल के साथ इसकी जड़ का लेप करने से श्लीपद (हाथीपाव) रोग में लाभ होता है।