सपनों की नगरी में संघर्ष: इन एक्टर्स ने कैसे किया अपने करियर की शुरुआत
सपनों की नगरी में संघर्ष
अभिनेता: मुंबई को मायानगरी कहा जाता है, और इसका कारण केवल यह नहीं है कि यह भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा केंद्र है, बल्कि यह भी है कि यहां आने वाले लोग बड़े सपनों के साथ आते हैं। इस शहर की चमक और ग्लैमर से प्रभावित होकर, लोग यहां अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करते हैं।
1980 के दशक में एक युवक यहां अपने सपनों को साकार करने आया, लेकिन उसका लक्ष्य स्पष्ट नहीं था। आइए जानते हैं कि वे कौन से अभिनेता हैं जिन्होंने संघर्ष के दिनों में अखबार बेचा, भूखे सोए, या बस कंडक्टर बने।
भूखे पेट सोने वाले अभिनेता
हम बात कर रहे हैं राजीव भाटिया की, जिन्हें अक्षय कुमार के नाम से जाना जाता है। अक्षय कुमार को फिल्म इंडस्ट्री में 'खिलाड़ी कुमार' के नाम से भी जाना जाता है। उनका परिवार मध्यमवर्गीय था, और उनके पिता ने उन्हें बैंकॉक भेजने के लिए पैसे इकट्ठा किए। वहां अक्षय ने एक होटल में वेटर का काम किया और उसी होटल के सर्वेंट क्वार्टर में कुछ अन्य लड़कों के साथ रहते थे।
एक इंटरव्यू में अक्षय ने बताया कि वह दिल्ली के चांदनी चौक में 24 लोगों के साथ एक कमरे में रहते थे और कई बार उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता था।
अखबार बेचकर सफलता पाने वाले
रवि किशन, जो भोजपुरी, बॉलीवुड और साउथ सिनेमा में प्रसिद्ध हैं, ने अपने संघर्ष के दिनों में घर-घर जाकर अखबार बेचा। इस काम से उन्होंने अपने परिवार की आर्थिक मदद की। आज रवि किशन करोड़पति हैं और फिल्मों के लिए लाखों रुपये चार्ज करते हैं। उन्होंने हिंदी फिल्म 'गिरफ्त' (1992) से अपने करियर की शुरुआत की, जबकि उनकी पहली भोजपुरी फिल्म 'सइयां हमार' (2003) थी।
बस कंडक्टर रहे महान अभिनेता
सुनील दत्त ने सिनेमा को पांच दशकों तक अपनी सेवाएं दीं और 80 से अधिक फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीता। फिल्मों में आने से पहले, उन्होंने कई छोटे-मोटे काम किए, जिनमें बस कंडक्टर का काम भी शामिल था। पिता की मृत्यु के बाद, वह अपनी माँ के साथ पाकिस्तान से लखनऊ आए और फिर मुंबई पहुंचे। पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने छोटे-मोटे काम करके पैसे कमाए। एक बार उन्होंने एक इंटरव्यू में इस बारे में खुलासा किया था।
