मक्का का इतिहास: हुबल की पूजा और इस्लाम का उदय

मक्का का पवित्र स्थान और हुबल की कहानी

मक्का, जिसे आज इस्लाम का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है, का एक दिलचस्प इतिहास है। इस्लाम के आगमन से पहले, मक्का में 360 से अधिक मूर्तियाँ स्थापित थीं। इनमें से एक प्रमुख देवता था – हुबल।
हुबल की मूर्ति काबा के भीतर स्थित थी, और यह साधारण मूर्ति नहीं थी। कुछ कथाओं के अनुसार, यह लाल कर्नेलियन से बनी थी, और जब इसका एक हाथ टूट गया, तो उसे सोने का हाथ लगाया गया। यह दर्शाता है कि उस समय हुबल को कितनी महत्वपूर्णता दी जाती थी।
हुबल को भाग्य और निर्णयों का देवता माना जाता था। काबा के पास कुछ तीर रखे जाते थे, जिन्हें 'क़िस्मत निकालने' के लिए उपयोग किया जाता था। लोग इन तीरों का उपयोग निर्णय लेने के लिए करते थे, जैसे कि युद्ध करना चाहिए या नहीं, व्यापार में कौन सी दिशा सही है, या बच्चे का नाम क्या रखा जाए।
क़ुरैश, मक्का की एक प्रमुख क़बीला, जिसे बाद में पैग़म्बर मुहम्मद की क़बीला भी माना गया, हुबल को अपना संरक्षक देवता मानती थी। जब इस्लाम का संदेश आया कि 'अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं', तो यह हुबल और अन्य मूर्तियों की पूजा को चुनौती थी। इस प्रकार, इस्लाम और हुबल के बीच का संघर्ष केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक सामाजिक और धार्मिक ढांचे का टकराव बन गया।
जब पैग़म्बर मुहम्मद ने 630 ई. में मक्का पर विजय प्राप्त की और काबा को शुद्ध किया, तो उन्होंने सबसे पहले हुबल की मूर्ति को गिराया। कहा जाता है कि जैसे ही मूर्ति को हटाया गया, पैग़म्बर ने 'अल्लाहु अकबर' का नारा लगाया, जैसे वह एक युग के अंत की घोषणा कर रहे हों।
आज हुबल का नाम केवल इतिहास की किताबों और कुछ चर्चाओं में ही मिलता है। लेकिन उसकी कहानी यह दर्शाती है कि कैसे समय के साथ पूजा की परंपराएँ, समाज और विश्वास बदलते हैं, और एक मूर्ति जो कभी लोगों के भाग्य का निर्धारण करती थी, अब केवल इतिहास का हिस्सा बनकर रह गई है।